Thursday, July 26, 2012

टीम अन्ना का भव्य अनशन और उसके साइड इफ़ेक्ट Anna Hajare



यह सही है कि केजरीवाल टीम के बारे में बात करना सिर्फ समय बर्बाद करना है, लेकिन दिल्ली में जो माहौल है, उसमें जरूरी हो गया है कि कुछ बातें कर ली जाए। 
शुरू में जरूर लगा कि अन्ना आंदोलन बड़े ताकतवर तरीके से उठा है, लेकिन लगातार आंतरिक मतभेदों और विवादों ने इसकी छवि को काफी धक्का पहुंचाया है। बेशक टीम अन्ना कहे कि सब कुछ ठीक है, लेकिन इनसे यह सवाल पूछा जाता रहेगा कि बिना ‘हेल्दी इंटरनल डेमोक्रेसी’ के आप देश के लोकतंत्र की कमियां दूर करने की बात कैसे कर सकते हैं? इस टीम के कई अहम सदस्य बीते कुछ महीनों में इसे छोड़ चुके हैं। अगर वे गलत थे, तो आपने उन्हें आंदोलन में साथ क्यों लिया? अगर ऐसा नहीं है, तो क्या आंदोलन किसी एक या दो लोगों की मर्जी का गुलाम तो बनने नहीं जा रहा? टीम अन्ना के मौजूदा और पूर्व सदस्यों से बात करने पर एक बात तो साफ होती है कि टीम में सहमति और तालमेल का भारी अभाव है, जो किसी लक्ष्य को पाने में बड़ी बाधा साबित हो सकता है। बहुत से ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा जरूरी है, क्योंकि लोकतंत्र में जो काम हमारी राजनीतिक पार्टियों को करना था, वे कर न सकीं। देश ने उन्हें छह दशक से ज्यादा का समय दिया, जो काफी है।
ऐसे में टीम अन्ना की अगुआई में इन मुद्दों को उठाया और लागू कराया जा सकता है। पर सवाल यह है कि क्या अन्ना भ्रष्टाचार के मुद्दे की जड़ को काट पायेंगे ?
भ्रष्टाचार सदाचार का विपरीत है. 
जब तक लोगों में सदाचार की तमन्ना नहीं जागेगी तब तक अनशन करने से सरकार को तो परेशान किया जा सकता है लेकिन भ्रष्टाचार को नहीं मिटाया जा सकता है.
अनशन का रास्ता आत्महत्या और अराजकता का रास्ता है. इस तरह अगर सरकार अन्ना के क़ानून को बिना किसी विश्लेषण और सुधार के मान लेती है तो यह भी ग़लत है और अगर अन्ना अपना अनशन तोड़ते हैं, जैसा कि अनशन करने की घोषणा वह कर चुके हैं, तो उस से जनता में मायूसी फैलेगी और अगर वह अनशन नहीं तोड़ते और वह चल बसे तो देश में भारी अराजकता फैल जायेगी.
तीनों मार्ग देश को ग़लत अंजाम की तरफ़ ले जा रहे हैं. 
अनशन और आत्महत्या बहरहाल ग़लत है.
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र श्रीवास्तव जी  अपने ब्लॉग 'आधा सच' पर लिखते हैं -
केजरीवाल की जो भाषा है, उसका भगवान ही मालिक है। कई बार तो उनकी बात से ऐसा लगता है कि जैसे उन्होंने किसी से बयाना ले लिया है कि वो सरकार की ऐसी तैसी कर देंगे, लेकिन जब वो इसमें नाकाम रहते हैं तो अभद्र और अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल करते हैं। टीम अन्ना बड़ी बड़ी बातें करती हैं, लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि अनशन के लिए करोंड़ो रुपये फूंकने की क्या जरूरत है ? अनशन तो जंतर मंतर पर एक दरी बिछा कर भी की जा सकती है, फिर ये फाइव स्टार तैयारी क्यों की जाती है ?आप नहीं समझ सकते, क्योंकि ये आपका विषय नहीं है। आपको याद होगा कि यही टीवी चैनलों ने गुजरात के मुख्यमंत्री के सद्भावना उपवास का मजाक बनाया था और कहा कि ये फाइव स्टार उपवास दिखावटी है, तो उनकी नजर इस अनशन पर क्यों नहीं है? क्या ये दोहरा मापदंड नहीं है ?