क्या मौत के बाद भी जीवन है ?
और अगर है तो कैसे और कहां ?
दुनिया के हरेक इंसान के मन में यह सवाल उठता है और दुनिया के तमाम दार्शनिकों ने इस विषय में तरह तरह की कल्पनाएं भी की हैं। आवागमनीय पुनर्जन्म की कल्पना एक ऐसी ही कल्पना है जिसका आधार दर्शन है न कि ईशवाणी।
इसलाम ऐसी कल्पना को असत्य मानता है। इसलाम के अनुसार इंसान की मौत के बाद उसके शरीर के तत्व प्रकृति के तत्वों में मिल जाते हैं लेकिन उसका ‘नफ़्स‘ अर्थात उसके वुजूद की असल हक़ीक़त, उसकी रूह आलमें बरजख़ में रहती है और वहां अपने अच्छे-बुरे अमल के ऐतबार से राहत और मुसीबत बर्दाश्त करती है। एक वक्त आएगा जब धरती के लोग अपने पापकर्मों की वजह से धरती का संतुलन हर ऐतबार से नष्ट कर देंगे और तब क़ियामत होगी। धरती और धरती पर जो कुछ है सभी कुछ नष्ट हो जाएगा। एक लम्बे अंतराल के बाद वह मालिक फिर से एक नई सृष्टि की रचना करेगा और तब हरेक रूह शरीर के साथ इसी धरती से पुनः उठाई जाएगी। इस रोज़े क़ियामत में अगले-पिछले, नेक-बद, ज़ालिम और मज़लूम सभी लोग मालिक के दरबार में हाज़िर होंगे और तब मालिक खुद इंसाफ़ करेगा। उसकी दया से बहुतों की बख्शिश होगी, बहुतों का उद्धार होगा लेकिन फिर भी ऐसे मुजरिम होंगे जिन्होंने ईश्वरीय विधान की धज्जियां उड़ाई होंगी, वे समझाने के बावजूद भी न माने होंगे, अपनी खुदग़र्ज़ी के लिए उन्होंने इंसानों का खून चूसने और बहाने में कोई कमी हरगिज़ न छोड़ी होगी। इन्हें उम्मीद तक न होगी कि कभी इन्हें अपने जुल्म और ज़्यादती का हिसाब अपने मालिक को भी देना है। ऐसे मुजरिम उस दिन अपने रब की सख्त पकड़ में होंगे। उस पकड़ से उन्हें उस रोज़ न तो कोई ताक़त और दौलत के बल पर छुड़ा पाएगा और न ही कुल-गोत्र और सिफ़ारिश के बल पर। उस दिन इंसाफ़ होगा, ऐसा इंसाफ़ जिसके लिए दुनिया में आज हरेक रूह तरस रही है। जो ईमान वाले बंदे होंगे, उन्हें उनकी नेकी और भलाई के बदले में सदा के लिए अमन-शांति की जगह जन्नत में बसा दिया जाएगा और दुनिया में आग लगाने वाले संगदिल ज़ालिमों को सदा के लिए जहन्नम की आग में झोंक दिया जाएगा। न तो आलमे-बरज़ख़ से कोई रूह लौटकर इस ज़मीन पर दोबारा किसी गर्भ से जन्म लेती है और न ही जन्नत या जहन्नम से ही कोई रूह यहां जन्म लेगी।
पाप के लगातार बढ़ने के बावजूद दुनिया की आबादी में रोज़ इज़ाफ़ा ही हो रहा है । जिससे यही पता चलता है कि आवागमनीय पुनर्जन्म महज़ एक दार्शनिक कल्पना है न कि कोई हक़ीक़त। अगर वास्तव में ही आत्माएं पाप करने के बाद पशु-पक्षी और पेड़-पौधों की योनियों में चली जाया करतीं तो जैसे जैसे पाप की वृद्धि होती, तैसे तैसे इंसानी आबादी घटती चली जाती और निम्न योनि के प्राणियों की तादाद में इज़ाफ़ा होता चला जाता, जबकि हो रहा है इसके बिल्कुल विपरीत। इसी तरह दूसरे कई और तथ्य भी यही प्रमाणित करते हैं।
और अगर है तो कैसे और कहां ?
दुनिया के हरेक इंसान के मन में यह सवाल उठता है और दुनिया के तमाम दार्शनिकों ने इस विषय में तरह तरह की कल्पनाएं भी की हैं। आवागमनीय पुनर्जन्म की कल्पना एक ऐसी ही कल्पना है जिसका आधार दर्शन है न कि ईशवाणी।
इसलाम ऐसी कल्पना को असत्य मानता है। इसलाम के अनुसार इंसान की मौत के बाद उसके शरीर के तत्व प्रकृति के तत्वों में मिल जाते हैं लेकिन उसका ‘नफ़्स‘ अर्थात उसके वुजूद की असल हक़ीक़त, उसकी रूह आलमें बरजख़ में रहती है और वहां अपने अच्छे-बुरे अमल के ऐतबार से राहत और मुसीबत बर्दाश्त करती है। एक वक्त आएगा जब धरती के लोग अपने पापकर्मों की वजह से धरती का संतुलन हर ऐतबार से नष्ट कर देंगे और तब क़ियामत होगी। धरती और धरती पर जो कुछ है सभी कुछ नष्ट हो जाएगा। एक लम्बे अंतराल के बाद वह मालिक फिर से एक नई सृष्टि की रचना करेगा और तब हरेक रूह शरीर के साथ इसी धरती से पुनः उठाई जाएगी। इस रोज़े क़ियामत में अगले-पिछले, नेक-बद, ज़ालिम और मज़लूम सभी लोग मालिक के दरबार में हाज़िर होंगे और तब मालिक खुद इंसाफ़ करेगा। उसकी दया से बहुतों की बख्शिश होगी, बहुतों का उद्धार होगा लेकिन फिर भी ऐसे मुजरिम होंगे जिन्होंने ईश्वरीय विधान की धज्जियां उड़ाई होंगी, वे समझाने के बावजूद भी न माने होंगे, अपनी खुदग़र्ज़ी के लिए उन्होंने इंसानों का खून चूसने और बहाने में कोई कमी हरगिज़ न छोड़ी होगी। इन्हें उम्मीद तक न होगी कि कभी इन्हें अपने जुल्म और ज़्यादती का हिसाब अपने मालिक को भी देना है। ऐसे मुजरिम उस दिन अपने रब की सख्त पकड़ में होंगे। उस पकड़ से उन्हें उस रोज़ न तो कोई ताक़त और दौलत के बल पर छुड़ा पाएगा और न ही कुल-गोत्र और सिफ़ारिश के बल पर। उस दिन इंसाफ़ होगा, ऐसा इंसाफ़ जिसके लिए दुनिया में आज हरेक रूह तरस रही है। जो ईमान वाले बंदे होंगे, उन्हें उनकी नेकी और भलाई के बदले में सदा के लिए अमन-शांति की जगह जन्नत में बसा दिया जाएगा और दुनिया में आग लगाने वाले संगदिल ज़ालिमों को सदा के लिए जहन्नम की आग में झोंक दिया जाएगा। न तो आलमे-बरज़ख़ से कोई रूह लौटकर इस ज़मीन पर दोबारा किसी गर्भ से जन्म लेती है और न ही जन्नत या जहन्नम से ही कोई रूह यहां जन्म लेगी।
पाप के लगातार बढ़ने के बावजूद दुनिया की आबादी में रोज़ इज़ाफ़ा ही हो रहा है । जिससे यही पता चलता है कि आवागमनीय पुनर्जन्म महज़ एक दार्शनिक कल्पना है न कि कोई हक़ीक़त। अगर वास्तव में ही आत्माएं पाप करने के बाद पशु-पक्षी और पेड़-पौधों की योनियों में चली जाया करतीं तो जैसे जैसे पाप की वृद्धि होती, तैसे तैसे इंसानी आबादी घटती चली जाती और निम्न योनि के प्राणियों की तादाद में इज़ाफ़ा होता चला जाता, जबकि हो रहा है इसके बिल्कुल विपरीत। इसी तरह दूसरे कई और तथ्य भी यही प्रमाणित करते हैं।