Tuesday, February 8, 2011

‘नफ़रतों का हो ख़ात्मा , इस्लाम इस हक़ीक़त का ऐलान है‘ Divine unity


फलाहारी बाबा के साथ संतुलित आहारी अनवर जमाल
आपका भाई अनवर जमाल, निज़ामुद्दीन दिल्ली में
डाक्टर असलम क़ासमी


Dr. Ziauddin Ahmad, Assistant Director (Unani Medicine),
Ministry of health and family welfare , govt . of इंडिया &
Mr . R . S. Adil Advocate (Left)
मानव जाति एक है। इस्लाम इस हक़ीक़त का ऐलान है। इस्लाम के मानने वालों ने खुद कई मत बनाए और एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाए और कई बार वे इसमें हद से आगे भी निकल गए। इसका नुक्सान उन्हें हुआ और उनके साथ मुल्क और दुनिया की दूसरी क़ौमों को भी हुआ। दूसरी क़ौमों से उन्हें व्यंग्य भी सुनने को मिले और यह स्वाभाविक था। दूसरी क़ौमों के तर्ज़े अमल और उनके सुलूक ने उन्हें अपना जायज़ा लेने पर मजबूर किया और कुछ दूसरे दुखदायी हादसों ने उन्हें बताया कि सबके लिए एकता ही नफ़ाबख्श और बेहतर है।
पिछले दिनों हमारे एक सत्यसेवी मित्र जनाब सुहैल ख़ान साहब का रामपुर (उ.प्र.) से फ़ोन आया और उन्होंने बताया कि कल यानि कि दिनांक 27 जनवरी 2011 को रामपुर में तमाम मुस्लिम मतों के ज़िम्मेदारों ने अपने इख्तेलाफ़ात भुलाकर एक जमाअत गठित की है, जिसका नाम ‘इत्तेहादे मिल्लत‘ रखा गया है। इसके अध्यक्ष बरेलवी समुदाय से हैं जिनका नाम है सज्जादानशीन जनाब फ़रहत जमाली। ये रामपुर की सबसे बड़ी दरगाह हाफ़िज़ शाह जमालुल्लाह साहब के सज्जादे हैं। इसका सचिव जनाब हामिद रज़ा खां साहब को चुना गया है। हामिद साहब सुहैल भाई की तरह ‘वेद-कुरआन‘ के संदेश का प्रचार एक लंबे समय से कर रहे हैं। उनके अलावा बहुत से भाई-बहन ऐसे हैं जो विश्व एकता के लिए काम कर रहे हैं। इन्हीं भाईयों की दुआओं और कोशिशों का नतीजा है कि रामपुर में सभी मुस्लिम फ़िरक़ों के ज़िम्मेदारों ने एकता की ओर क़दम बढ़ाए। मालिक उनसे सेवा का काम ले, केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि हरेक इंसान के लिए।
‘नफ़रतों का ख़ात्मा हो‘ ऐसी ख्वाहिश सिर्फ़ रामपुर वालों की ही नहीं है बल्कि रामपुर से बाहर भी ऐसी ही ख्वाहिश देखी जा सकती है। कल एक ब्लागर प्लस मीटिंग में भी यही देखने में आया। समाज से नफ़रतों का ख़ात्मा हो और लोगों में एक दूसरे के प्रति विश्वास बहाल हो, लोगों का चरित्र और उनकी आदतें बेहतर हो, मुल्क और समाज में अमन क़ायम रहे, लोग उस वचन को पूरा करें जो कि वे नमाज़ में रोज़ाना अपने मालिक से करते हैं और वे कुरआन के बताए उस सीधे रास्ते पर चलें जिसकी दुआ वे खुद नमाज़ में बार-बार करते हैं। इस मक़सद के लिए ‘अंजुमन ए तहफ़फ़ुज़े इस्लामी (रजिस्टर्ड) काफ़ी समय से अपने स्तर पर कोशिश करती आ रही है। इस अंजुमन की बुनियाद दिल्ली में जनाब रफ़ीक़ अहमद साहब, एडवोकेट ने रखी थी। आजकल इसके सद्र जनाब मुहम्मद ज़की साहब हैं। इस तंज़ीम के सभी सदस्य उच्चशिक्षित और समाज के प्रभावशाली लोग हैं। वे देश विदेश के बड़े-बड़े मुस्लिम स्कॉलर्स के प्रोग्राम कराते आये हैं। जनाब ऐजाज़ हैदर आर्य साहब, डिप्टी डायरेक्टर आल इंडिया उर्दू तालीम घर लखनऊ के ज़रिये हमारी कोशिशें उनके इल्म में आईं तो उन्होंने हमसे मिलने की ख्वाहिश ज़ाहिर की। एक्सीडेंट की चोटें तो तक़रीबन ठीक हो चुकी थीं लेकिन मैं थोड़ा सा बीमार था और फिर अगले ही इतवार को जनाब डाक्टर अयाज़ अहमद साहब की शादी में भी दिल्ली जाना था। मैं कुछ कशमकश में था लेकिन मास्टर अनवार अहमद साहब और डाक्टर अयाज़ साहब ने कह दिया कि आपको तो चलना ही पड़ेगा। बहरहाल हम चले और पहुंच गए दिल्ली। सबसे पहले पहुंचने वालों में हम तीन लोग थे मैं खुद, डाक्टर असलम क़ासमी और मास्टर अनवार साहब। थोड़ी ही देर बाद डाक्टर अयाज़ साहब भी कुछ और साथियों के साथ पहुंच गए और इसी दरमियान उनकी अंजुमन के लोग भी आना शुरू हो गए और उनके बुलाए हुए मेहमान भी। हम सभी का एक दूसरे से तआर्रूफ़ हुआ और फिर हरेक ने अपनी अपनी सोच और तजर्बों को भी शेयर किया। इसी बीच नाश्ता भी हुआ, जुहर की नमाज़ भी हुई और फिर लंच भी हुआ।
लंच में कितनी तरह की वेज और नॉनवेज डिशेज़ थीं, उनके न तो नाम ही पता हैं और न ही ठीक से उन्हें गिनना ही संभव है। यही हाल फलों, चटनियों और मिठाईयों का था। जनाब मुहम्मद ज़की साहब ने अपनी तरफ़ से अहतमाम में किसी भी तरह की कोई कमी न छोड़ी थी। इस बीच वे और उनके साहबज़ादे खड़े रहे और इसरार करके खिलाते रहे। खाने की तारीफ़ करते हुए जनाब आर. एस. आदिल साहब ने कहा कि साहब अगली बार का इंतज़ार रहेगा। उनकी इस सीधी और बिल्कुल सही बात पर सभी मुस्कुरा दिए।
जनाब आर. एस. आदिल साहब ने इस्लाम को एक जीवन पद्धति के तौर पर स्वीकार करने के बाद एक संक्षिप्त पुस्तिका भी लिखी है जिसका नाम है ‘डा. अंबेडकर और इस्लाम‘। यह किताब हिंदुस्तान में बहुत मक़बूल हुई और कई भाषाओं में इसका अनुवाद भी हुआ। उनका कहना है कि मैंने डाक्टर अंबेडकर का साहित्य इतना ज़्यादा पढ़ा है कि शायद किसी अंबेडकरवादी ने भी इतना ज़्यादा न पढ़ा हो। आदिल साहब एक एडवोकेट भी हैं। उनके दो जवान बेटे भी उनके साथ आए थे। इस मजलिस में एक और नौजवान इबराहीम दानिश अलसऊद साहब से भी मुलाक़ात हुई जो कि अपने वालिद साहब के साथ जामा मस्जिद दिल्ली से तशरीफ़ लाये थे।
डाक्टर ज़ियाउद्दीन अहमद साहब से भी यहीं मुलाक़ात हुई। ये दिल्ली में एक ऊंचे ओहदे पर काम करते हैं।
दिल चाहता था कि हम दिल्ली में हैं तो कम से कम शाहनवाज़ भाई से तो मुलाक़ात हो ही जाए। उन्हें हमने बुलाया तो मालूम हुआ कि आज उनके छोटे भाई के आफ़िस की ओपनिंग है लेकिन फिर भी वे थोड़ी देर के लिए आए और लंच से पहले ही चले गए। लंच के बाद भी समाज की बेहतरी के लिए कुछ किए जाने को लेकर बातें होती रहीं। जनाब शमीम अहमद साहब और जनाब रफ़ीक़ अहमद एडवोकेट साहब ने बार बार इस बात पर ज़ोर दिया कि मसलक की बुनियाद पर बंटवारे का ख़ात्मा होना चाहिए। जनाब ज़की साहब ने डाक्टर असलम क़ासमी साहब से पूछा कि क्या ज़कात की रक़म को दावती कामों में ख़र्च किया जा सकता है। डाक्टर असलम क़ासमी साहब ने बताया कि ‘मौल्लिफ़तुल कुलूब‘ की एक मद ज़कात के मसरफ़ में शामिल है और यह मद दावत की मद में ही आती है।
जब मसलकी नफ़रतों के ख़ात्मे का ज़िक्र आया तो मैंने जनाब सय्यद मुहम्मद मासूम साहब का भी उड़ता हुआ सा ज़िक्र किया और कहा कि ऐसे लोग आज भी मौजूद हैं और हरेक मसलक में हैं जिनके दिल अपने मसलक के उसूलों की पाबंदी के बावजूद नफ़रत से ख़ाली हैं। ऐसे लोग आज भी ‘अमन का पैग़ाम‘ दे रहे हैं।
कब वक्त गुज़र गया, पता ही नहीं चला और जब हम घर वापस पहुंचे तो रात के 11 से ज़्यादा बज चुके थे।
इस नशिस्त का ज़िक्र मुकम्मल करने से पहले मैं यह भी बताना चाहूंगा कि हमने दिल्ली में महंत स्वामी रामकृष्ण दास जी से भी मुलाक़ात की। वृंदावन में इन्हें फलाहारी बाबा के नाम से जाना जाता है और परिक्रमा मार्ग पर ‘श्री गोरेदाऊ आश्रम‘ के नाम से इनका आश्रम है। स्थायी रूप से ये ‘श्री बद्रीनारायण मंदिर, शांति आश्रम, जिलतरी घाट, जबलपुर (म.प्र.)‘ में रहते हैं। हमने बाबा जी को ‘वंदे ईश्वरम्‘ पत्रिका के साथ एक पुस्तिका ‘आपकी अमानत आपकी सेवा में‘ भेंट की। जिसे देखकर उन्होंने बहुत सराहा। उनके साथ हमारी मुलाक़ात अच्छी रही। उनसे मिलकर हम निज़ामुद्दी वेस्ट पहुंचे। जहां यह उम्दा नशिस्त अंजाम पाई और जहां सभी हाज़िरीने मजलिस ने मुल्क और समाज की बेहतरी के लिए नफ़रतों को मिटाने के लिए आपस में एक दूसरे की हर संभव मदद करने का संकल्प लिया। दरअस्ल संकल्प तो ये सभी लोग पहले से ही लिये हुए थे। इस मजलिस में तो उसे मिलकर दोहराया भर था ताकि संकल्प ताज़ा हो जाए।
उन्होंने हमें ‘ग़लतफ़हमियों का निवारण‘ और ‘इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद साहब‘ ये दो किताबें दर्जनों से भी ज़्यादा भेंट कीं। इन दोनों किताबों को आप ‘इस्लाम इन हिन्दी‘ पर देख सकते हैं।

4 comments:

Taarkeshwar Giri said...

Mubarak ho janab

DR. ANWER JAMAL said...

@ शुक्रिया जनाब.

किलर झपाटा said...

कहते हैं ज्यादा किताबें पढ़ने से आदमी का दिमाग खराब हो जाया करता है। जैसा कि आपका। हा हा।

एस एम् मासूम said...

‘नफ़रतों का हो ख़ात्मा , इस्लाम इस हक़ीक़त का ऐलान है
.
bahut khoob