Tuesday, February 1, 2011

पंडित जी क्यों तुड़वाना चाहते हैं मूर्ति और मज़ार ? Bad wish

पछुआ पवन (pachhua pawan): To Dr Anwar Jamal On अब बताईये कि आपको मेरी किस बात पर ऐतराज़ है ?
http://www.123muslim.com/islamic-art/259-dargah-sharif-hazrat-pir-haji-ali-shah-bukhari-r.html
श्री पवन कुमार मिश्रा जी से हमारा संवाद चल रहा था। इसी दरमियान वे बोले कि
'हिन्दुस्तान में जितने गंडे ताबीज़ मुसलमानों द्वारा प्रयुक्त किये जाते है जितनी मजारे बनी है उन मजारो की परस्ती में आप भी शामिल होकर गैर इस्लामिक कृत्या करते है अभी आप ग़ालिब के बुत के पास खड़े होके ग़ालिब की स्तुतिगान किया था यह सब कुफ्र है यदि आप बुत परस्त ना हो तो ग़ालिब समेत तमाम औलिया चिश्ती. जितनी भी दरगाहे है सब को कम से कम आप ज़मीदोज करके माने अन्यथा धरम पर कुछ ना लिखने की कसम खाइए या इसलाम से तौबा कीजिये'
हमने उन्हें जवाब दिया कि
ऐ दोस्त ! अलविदा , ॐ शांति
@ मिश्रा जी ! आप मुझे इस देश का कानून तोड़ने के लिए क्यों उकसा रहे हैं ?
ग़ालिब का बुत और मज़ार मेरी प्रॉपर्टी नहीं हैं । उन्हें तोड़ने की बात कहकर आप मुझे क्राइम करने की प्रेरणा दे रहे और फिर भी अपनी मति पर हंसने के बजाए आप मेरी मति पर हंस रहे हैं ?
जहाँ गंभीर वार्तालाप चल रहा हो , वहां आप हंस क्यों रहे हैं ?
आप हंसने के बजाय तर्क दीजिए और बताईये कि मैं तो आपको वैदिक आचार और संस्कार के पालन की , देश के क़ानून के पालन की शिक्षा दे रहा हूं और उसका जवाब हाँ में देने के बजाय आप मुझे मूर्तियां और मज़ार तोड़कर जुर्म करने की दुष्प्रेरणा दे रहे हैं?
और जब मैं ऐसा जुर्म करने के लिए तैयार नहीं हूँ तो आप मुझे कंस कह रहे हैं ?
भाई मैंने कंस की तरह कब किसी का राज्य क़ब्ज़ाया या कब किसी की लड़कियां मारीं ?
आपने मुझे दुर्योधन कहा , दुर्योधन फिर भी ग़नीमत था पांडवों की अपेक्षा। पांडवो से एक लाख दरजे अच्छे तो आप ही हैं ।
जब आदमी तर्क देने के बजाय हंसने लगे और बुरे लोगों से उपाधियां देने लगे तो समझिए कि उसके पास अपने पक्ष को सत्य सिद्ध करने के लिए कोई भी तर्क मौजूद नहीं है ।
मेरी ताक़त मेरे विरोधियों का विरोध है। आपने मेरा विरोध किया , आपने मुझे मज़बूत किया। आप मुझे पढ़ते हैं तो भी आप मुझे मज़बूत ही करते हैं । आप मुझे पढ़ना बंद कर दीजिए मेरी ताक़त घटती चली जाएगी । आज आप यह प्रण कीजिए कि मेरा कोई भी ब्लाग आप हरगिज़ नहीं पढ़ेंगे।
अब आप आराम से अकेले हंसते रहिए , हम यहां से रूख़्सत होते हैं बिना हंसे ।
मालिक आपको और हमें सन्मार्ग दिखाए ।
आप भी विचार कीजिए कि अगर हरेक आदमी अपने धर्म का पूरी तरह पालन करे और देश के क़ानून को न तोड़े तो हमारे देश में कितनी शांति और खुशहाली आ जाएगी ?
लेकिन अफ़सोसे कि लोग इतनी सही बात को भी केवल इसलिए नहीं मानना चाहते कि इसे मानने के लिए उन्हें कष्ट उठाना पड़ेगा, अपने आप को बदलना पड़ेगा। ज़्यादातर आदमी जैसे हैं, उसी हाल में रहना चाहते हैं और चाहते हैं कि लोग उन्हें उसी हालत में बहुत बड़ा धार्मिक और देशप्रेमी मान लें।
क्या यह रवैया सही है ?


'मूर्ति और मज़ार',Bad wish'