Sunday, August 14, 2011

क्या हम इन हालात में मनाएंगे जश्न ए आज़ादी ?


पुण्य प्रसून बाजपेयी


हो सकता है यह संयोग हो, लेकिन 5 अगस्त को जब कॉमनवेल्थ गेम्स की पोटली कैग ने खोली और पीएमओ का नाम लिया तो एक पत्रकार ने सवाल पूछा, आप मनमोहन सिंह का नाम क्यों नहीं लेते हो? तो उक्त  अधिकारी ने कहा? नाम आप लीजिये हम तो संस्था बताते हैं। कुछ इसी तरह का सवाल 19 बरस पहले 1992 में सिक्योरिटी स्कैम यानी हर्षद मेहता घोटाले के वक्त जब पीएमओ का नाम आया तो एक पत्रकार ने पूछा आप पीवी नरसिंह राव क्यों नहीं कहते हैं, तो जवाब मिला नाम आप बताईये। लेकिन, उस वक्त जो नाम अखबारों की सुर्खियों में आया वह तब के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह और वाणिज्य राज्य मंत्री पी. चिदबरंम का था। और संयोग देखिये 19 बरस बाद कॉमनवेल्थ से लेकर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले तक में जो नाम सुर्खियो में है उसमें मनमोहन सिंह और चिदबरंम का ही नाम है। और स्वास्‍थ्‍य मंत्री बी.शंकरानंद का भी नाम था. 19 बरस पहले चिदबरंम को इस्‍तीफा देना पड़ा था। लेकिन, हर्षद मेहता के काले दामन का असल दाग तब भी वित्त मंत्रालय पर ही लगा था। सिर्फ मनमोहन सिंह नही बल्कि उनके जूनियर रामेश्वर ठाकुर भी फंसे थे।

लेकिन, इन 19 बरस में क्या-क्या कुछ कैसे-कैसे बदल गया, अगर उसके आईने में तब के वित्त मंत्री और अब के प्रधानमंत्री को फिट कर दिया जाये सिक्के के दोनों तरफ एक ही तस्वीर नजर आयेगी और संयोग शब्द कमजोर भी लगने लगता है। क्योंकि अभी जिस तरह टेलीकॉम, पेट्रोलियम, फूड, फर्टिलाईजर, कोयला और वित्त मंत्रालय से लेकर पीएमओ तक अलग-अलग घोटालों में फंसे दिखायी पड़ रहे हैं। अगर इसके उलट पीवी नरसिह राव के दौर यानी 1991-96 के वक्त मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधार के आईने में घोटाले और उसकी कहानियों को देखें तो अभी के वक्त पर सवाल खड़ा हो सकता है। अभी के कैश-फोर-वोट के उलट जेएमएम घूसकांड का सच जब कई हिस्‍सों में सामने आया तो पता यही चला कि सांसदों को खरीदा गया।

और उस वक्त रुपया जुगाड़ा पेट्रोलियम मंत्री सतीश शर्मा ने। हुआ यह कि सतीश शर्मा ने तब पेट्रोलियम सचिव खोसला को पेट्रोलियम डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट के नाम पर कुछ खास कंपनियों को तेल के कुएं देने को कहा। खोसला ने निर्णय लिया तो ओएनजीसी के वरिष्ट अधिकारियो ने इसका विरोध किया। मंत्री सतीश शर्मा इस लड़ाई में कूदे और तेल के कुएं एस्सार, वीडियोकॉन और रिलांयस को बांटे गये। एक महीने बाद ही पेट्रोलियम सचिव खोसला ने पद से इस्‍तीफा दे रिलायंस का दामन थाम लिया। खोसला को एस्सार ने 7 करोड़, रिलांयस ने 4 करोड़ और वीडियोकॉन ने 2 करोड़ दिये। जिसमें से साढ़े तीन करोड़ तो जेएमएम कांड में बांटे गये बाकी डकार लिये गये।

जाहिर है इस आईने में कुछ दिन पहले तक रहे पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा के रिलायंस प्रेम में गैस बेसिन बांटना भी देखा जा सकता है और पेट्रोल की कीमत किस तरह निजी कंपनियों के हवाले कर दी गयी यह भी समझा जा सकता है। 2जी स्पेक्ट्रम लाईसेंस को लेकर चाहे अब यह सवाल खड़ा होता हो कि सूचना तकनीक तो अभी ही दिखायी दे रही है तो फिर एनडीए के दौर की नीति पर चलने का मतलब क्या है। लेकिन सच यह भी है कि देश की आजादी के बाद 44 बरस में जितने टेलीफोन इस देश में थे उससे ज्यादा टेलीफोन 1991-95 के दौर में लगे। 1991 तक सिर्फ 50 लाख फोन थे। लेकिन 1995 में इसका संख्य एक करोड पांच लाख हो गई। और टेलीकॉम का असल घोटाला भी इसी वक्त हुआ। जब सुखराम के घर में बोरियो में साढ़े तीन करोड़ जब्त भी हुये और 5 बरस में 1000 करोड़ के काम में से सिर्फ 5 फीसदी काम ही पूरा हुआ। और डीओटी के अधिकारियों ने भी देश को चूना लगाया क्योंकि हर साल 4 हजार करोड़ के कल-पुर्जे इस दौर में पांच साल तक खरीद में दिखाये गये। लेकिन जैसे अभी 2जी लाईसेंस के खेल के पीछे कारपोरेट का मुनाफा पाने के लिये ए. राजा को मंत्री बनाने तक का खेल रहा।

उसी तर्ज पर उस दौर में भी डेढ़ लाख करोड़ में से 85 हजार करोड़ का काम बिना बिड के सुखराम ने अपने मातहत कंपनी हिमाचल फुटुस्टिक कम्युनिकेंसन लि. यानी एचपीसीएल को दे दी। जिसके संबंध इजरायल के कंपनी बेजेक्यू टेलीकॉम से जुड़े थे । उस वक्त रिलायंस यह सौदा चाहता था। लेकिन उसके हाथ खाली रहे, तो उसने अपने करीबी सासंदो को जरिये दस दिनो तक संसद ठप करवा दी। और कारपोरेट तंत्र ने सरकार को भी टेलीकॉम घोटाले को पकड़ने के लिये मजबूर किया। यह अलग बात है 2011 में इसी रिलांयस के बडे अधिकारी भी तिहाड़ जेल में स्पेक्ट्रम घोटाले की वजह से बंद हैं। महंगाई में कृषि मंत्री शरद पवार की चीनी माफिया को मदद पहुंचाने के आरोप बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस भी लगाती रही है।

लेकिन 19 बरस पहले चीनी का खेल कल्पनाथ राय ने किया था। 650 करोड़ के चीनी घोटाले के बाद कल्पनाथ राय को हवालात भी जाना पडा था और उसके बाद अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद के साथ संबंधों के मद्देनजर आतंकवादी कानून टाडा भी लगा था। डेढ़ बरस पहले मनमोहन सिंह के ही मंत्रीमंडल में फर्टीलाईजर मंत्री भी यूरिया घोटाले में फंसे। लेकिन यूरिया का असल घोटाला तो पीवी नरिसंह राव के दौर में हुआ। जब उनके बेटे प्रभाकर राव और रामलखन सिंह यादव के बेटे फर्टीलाईजर मंत्री प्रकाश चन्द्र यादव ने 133 करोड का यूरिया टर्की की कंपनी कर्सन से मंगाया। और नेशनल फर्टीलाईजर लिंमेटेड के दस्तावेजों में 133 करोड का यूरिया ले भी लिया. लेकिन वह यूरिया कभी आया ही नहीं। और मामला पीएम के बेटे से जुड़ा था तो तत्कालिक वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की खामोशी में मामले को ही रफा-दफा किया गया। तीन महीने पहले दिल्ली के कनाट-प्लेस की एक कंपनी से 70 करोड़ रुपये कैश पकड़ाये तो सीबीआई और सीबीडीटी के अधिकारियों ने कहा कि यह हवाला और मनीलॉडरिंग का रुपया है।

और देश की छोटी बडी सौ से ज्यादा कंपनियों के तार इससे जुड़े हुये हैं। इसमें राजनेताओं और नौकरशाहों के भी नाम आने की बात कही गयी। लेकिन बीते तीन महीने में हर कोई इस हवाला रैकेट को भूल गया। लेकिन 1995 का हवाला रैकेट आज भी देश को याद है। उस वक्त मध्यप्रदेश के व्यवसायी एस. के. जैन के हवाला खेल में देश के 31 टॉप राजनेता और 16 बडे नौकरशाहों का नाम आया था। राव कैबिनेट के 15 मंत्रियों के नाम थे। और सीबीआई को मिले जैन के घर से छापे में 58 लाख रुपये नकद। दो लाख की विदेशी करेंसी। 15 लाख के इंदिरा विकास पत्र। दो डायरियां और नोटबुक। याद कीजिये उस वक्त जैन डायरी में किस-किस का नाम लिखा था जिसे लेकर देश भर में हंगामा मचा। राजीव गांधी भी थे और आडवाणी भी। प्रणव मुखर्जी भी थे और यशंवत सिन्हा भी। आर. के. धवन भी थे और अरुण नेहरु भी। कमलनाथ भी थे और विजय कुमार मल्‍होत्रा भी। कैबिनेट सचिव नरेश चन्द्र भी थे और एनटीपीसी चैयरमैन पीएस बामी भी। जैन से पूछताछ में घेरे में पीएमओ भी आया और वित्त मंत्री पर भी अंगुली उठी।

उस दौर में भी यह माना गया कि पीवी नरसिंह राव ने संसद की जसंवत सिंह की अध्यक्षता वाली प्रावकलन कमेटी की सिपारिशो को ठंडे बस्ते में रखकर सीबीआई को संवैधानिक दर्जा नहीं दिया जा रहा था। क्योंकि 4 मार्च से 12 मार्च 1995 में जैन ने जो सीबीआई के सामने कबूला उससे नरसिंह राव ही हवाला शिंकजे में फंस रहे थे। जैन का वह बयान आज भी अपराध दंड संहिता की धारा 161 के तहत दर्ज है। जाहिर है इस आईने में स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच में पूर्व कैबिनेट मंत्री ए. राजा के बयान झलक सकते हैं। लेकिन देखिये उस वक्त हवाला की कुल रकम 69 करोड थी। और बीते तीन बरस में हवाला के तहत देश में 7 अरब से ज्यादा रुपया जब्त किया जा चुका है। लेकिन देश में कोई हरकत नहीं है।

घोटाले की फेरहिस्त की अब तो खनन की जमीन को निजी कंपनियो को बांटना और बेल्लारी सरीखी लूट सियासी जरुरत और विकास का मंत्र बन चुकी है। लेकिन यह खेल 1995 में भी खेला गया। तब कोयला मंत्री संतोष मोहन देव ने 240 करोड की बैलेडिला कोयला खादान महज 16 करोड में निजी कंपनी निप्पन डेन्ड्रो को दे दी थी। चूंकि निप्पन से पीएम की करीबी थी तो वित्त मंत्री ने भी उस वक्त कोई अंगुली नहीं उठायी। कुछ इसी का खेल शहरी विकास मंत्री शीला कौल ने दो हजार सरकारी घरों को बांट कर किया। दरअसल राव के दौर में जिस आर्थिक सुधार की लकीर मनमोहन सिंह बतौर वित्त मंत्री देश में खींच रहे थे और अब बतौर प्रधानमंत्री उसी लकीर पर देश को दौड़ा रहे हैं असल में उसका असर भी उसी अनुरुप दिखायी देने लगा है। इसलिये 1996 में आर्थिक घोटालो के लिये सीबीआई के फंदे में 200 कंपनियों के नाम थे। और आज 1100 कंपनियो के नाम हैं।

उस दौर में आईटीसी ने 350 करोड़ का फेरा उल्लघन किया था। गोल्डन टबैको के संजय डालमिया 400 करोड़ के खेल में फंसे थे। शा वैलेस के एमआर छाबरिया 100 करोड़ के इक्मानिक अफेन्स में तो गणपति एक्सपोर्ट के ओपी अग्रवाल 90 करोड़ की मनी लॉन्‍डरिंग में फंसे थे। लेकिन आज के हालात ऐसे है कि शेयर बाजार की औसतन हर तीन में से एक कंपनी की आर्थिक जुगाली पर सीबीआई नजर रखे हुये है। 1150 कंपनियों की बकायदा हवाला और मनीलैंडरिंग की जांच कर रही है। एफडीआई का रास्ता ही मारीशस और मलेशिया वाला है जिसे सरकार ही हवाला रुट मानती है। इन्ही रास्तों से विदेशी निवेश को दिखाने वाली भारतीय कंपनियों ने ही खुद की व्यूह रचना तैयार की है जिससे 50 लाख करोड़ से ज्यादा की पूंजी का ओर-छोर है क्या यह पकड़ पाना मुश्किल ना भी हो लेकिन इसे पकड़ा गया तो मनमोहन इक्नामिक्स का वह ढांचा चरमराने लगेगा जिसपर खड़े होकर भारतीय कंपनियों ने अब दुनिया में इनवेस्ट करना शुरू किया है।

इस दौड़ में देश के टॉप कारपोरेट भी हैं जिन्होंने इस दौर में 47 बिलियन डॉलर बिदेश में निवेश किया जबकि भारत में सिर्फ 22 मिलियन डॉलर। इसलिये बडा सवाल यही से खड़ा होता है कि जब आर्थिक भ्रष्टाचार की जमीन पर ही आर्थिक सुधार चल पडा है तो फिर इसे सरकारी व्यवस्था के ढांचे में कैसे रोका जा सकता है। और इसे रोकने के लिये जो अपराधिक कानून लागू करने से लेकर सजा देने का ढांचा तैयार होगा अगर उसके घेरे में उसमें सरकार, सांसद और प्रधानमंत्री नहीं आये तो फिर संसद के बिकने में कितने दिन लगेगें । और तब यह सवाल जागेगा कि क्या वाकई हम आजाद है और आजादी का जश्न मनाये।

पुण्य प्रसून बाजपेयी
पुण्य प्रसून बाजपेयी ज़ी न्यूज़ में प्राइम टाइम एंकर और सम्पादक हैं। पुण्य प्रसून बाजपेयी के पास प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 20 साल से ज़्यादा का अनुभव है। प्रसून देश के इकलौते ऐसे पत्रकार हैं, जिन्हें टीवी पत्रकारिता में बेहतरीन कार्य के लिए वर्ष 2005 काइंडियन एक्सप्रेस गोयनका अवार्ड फ़ॉर एक्सिलेंस और प्रिंट मीडिया में बेहतरीन रिपोर्ट के लिए 2007 का रामनाथ गोयनका अवॉर्ड मिला। उनके ब्लॉग http://prasunbajpai.itzmyblog.com/ से साभार

3 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

गम्‍भीर आलेख।

अभी इसे सहेज रहा हूं, बाद में फुर्सत से पढा जाएगा।

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क्‍या आपके ब्‍लॉग में वाइरस है?
बिल्‍ली बोली चूहा से: आओ बाँध दूँ राखी...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
स्वतन्त्रता की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

Neelkamal Vaishnaw said...

नमस्कार....
बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"

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