Monday, April 25, 2011

क्या यह संभव है कि भगवान ही न रहे ? God is immortal .


साईं कहते हैं मालिक को और जब सत्य शब्द भी इसके साथ लग जाता है तो यह नाम ईश्वर के लिए विशेष हो जाता है क्योंकि हर चीज़ का सच्चा स्वामी वही एक है जो न तो पैदा होता है और न ही उसे मौत आती है। जन्म-मरण का चक्र उसे बांधता नहीं है।
आज सुबह अख़बार में ख़बर देखी कि सत्य साईं बाबा नहीं रहे।
‘नहीं रहे‘ से क्या मतलब ?
सत्य साईं बाबा खुद को भगवान बताते थे। क्या यह संभव है कि भगवान ही न रहे ?
आदमी की मौत बता देती है कि मरने वाला भगवान और ईश्वर नहीं था लेकिन  जिन लोगों पर अंधश्रृद्धा हावी होती है वे फिर भी नहीं मानते।
मैं इस विषय पर कुछ लिखना चाहता था लेकिन एक लेख पर मेरी नज़र पड़ी तो मैंने मुनासिब समझा कि इसे ज्यों का त्यों आपके सामने पेश कर दूं।

एक मंझोले जादूगर की मौत

भारत के एक मंझोले जादूगर सत्यनारायण राजू उर्फ सत्य साईं बाबा की मौत हो गई। सत्य साईं का प्रभाव 165 देशों में बताया जाता है और इनके ट्रस्ट ने कई क्षेत्रों में जनहित में काम किए हैं। इनके ट्रस्ट की दौलत 40 हजार करोड़ रुपए बताई जाती है।

सत्य साईं बाबा सचमुच में सोने की खान थे। वे कई बार अपने मुंह से सोने की गेंद, चेन और शिवलिंग निकाल चुके थे। इस तरह बाबा स्विस घड़ियों और भभूत की खान भी थे। हालांकि बाबा के ये कारनामे कोई भी औसत जादूगर कर सकता है। मैंने सुना-पढ़ा है कि भारत के महान जादूगर पीसी सरकार ने बाबा के चमत्कारों को साधारण करतब बता कर चुनौती दी थी कि वे साईं उनके सामने अपने चमत्कार दिखाएं और वे खुद वैसे ही जादू दिखाएंगे। हालांकि बाबा ने कभी यह चुनौती स्वीकार नहीं की। अब भला हाथ की सफाई दिखाने वाले जादूगर से एक चमत्कारी बाबा का क्या मुकाबला!


सत्य साईं की मौत पर मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और लाल कृष्ण आडवाणी को बहुत दुख हुआ। सचिन तेंडुलकर को भी। एक न्यूज चैनल दिखा रहा था कि सचिन इस मौत से सदमे में हैं। सचिन ने नाश्ता नहीं किया और होटेल के कमरे में खुद को बंद रखा है और किसी से भी मिलने से इंकार कर दिया। सचिन ने सत्य साईं के खराब स्वास्थ्य के मद्देनजर पहले ही घोषणा की थी कि वह अपना बर्थडे नहीं मनाएंगे। पहले खबर आई थी कि सचिन रविवार का मैच भी नहीं खेलेंगे। मेरे एक दोस्त ने टिप्पणी की कि पिता की मौत के बाद बेहतरीन पारी खेली थी और अब नहीं खेलेंगे! हालांकि बाद में सचिन ने मैच खेला।

सत्य साईं बाबा क्या वाकई नहीं रहे? नहीं, संदेह का कोई मतलब नहीं है लेकिन सत्य साईं ने खुद ही 96 साल की उम्र में शरीर त्यागने की बात कही थी तो बाबा 85 साल की उम्र में ही कैसे चले गए! क्या वह लोगों के कलियुगी व्यवहार से तंग आ गए थे। मतलब ऐसा व्यवहार कि मरने से पहले ही लोग पूछने लगे कि बाबा के मरने के बाद उनकी जायदाद का क्या होगा!

अब इससे भी घोर कलयुग क्या आएगा कि जो बाबा भभूत से पूरी दुनिया का कष्ट दूर करता हो, उसी के इलाज के लिए विदेश से डॉक्टर आएं! हो सकता है कि बाबा की इच्छा ऐसे लोगों के बीच रहने की न रह गई हो या कौन जाने अस्पताल के बिस्तर पर लेटे बाबा ने अपनी भविष्यवाणी में सुधार किया हो लेकिन किसी ने उस पर गौर न किया हो। या क्या जाने बाबा ने 11 साल के लिए समाधि ही ली हो और नादान डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया हो!

खैर सत्य साईं की एक बात मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई। उन्होंने कहा था, ‘मैं भगवान हूं, तुम भी भगवान हो। फर्क सिर्फ इतना है कि यह मुझे पता है और 
तुमको नहीं पता है।’ अफसोस कि बाबा की इस साफगोई को लोग समझ नहीं सके।

 से साभार  

Friday, April 15, 2011

क्या हम अहसान फ़रामोश बनकर नहीं रह गए हैं ? Ungratefulness


आज लोगों ने उन मज़लूमों को भुला दिया है, जिन्होंने अंग्रेज़ी राज में 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में गोलियां खाई थीं और जिनके बदले आज देशवासी चैन से कमा-खा रहे हैं। अन्ना हजारे के आंदोलन को लेकर शोर पुकार मचाने वाले मीडिया को भी इसमें कोई कमाई नज़र न आई तो उसने भी इसे नज़रअंदाज़ करना ही मुनासिब समझा। जिन दरोग़ा और सिपाहियों ने जलियावालां बाग़ के बेकुसूरों पर गोलियां चलाई थीं, वे अंग्रेज़ी राज में भी मौज मारते रहे और उन्हें आज़ादी के बाद भी ससम्मान उनके पदों पर बहाल रखा गया। वे पहले भी मस्त रहे और बाद में भी हराम की खाते रहे जबकि आज़ादी के लिए मरने वाले अपनी जान से गए और उनके बाद उनके परिवार अंग्रेज़ों के जुल्मों के शिकार हो गए। शहीद बर्बाद हो गए और अंग्रेज़ों के पिठ्ठू चिलमचियों के दोनों हाथों में लड्डू रहे। मौक़ापरस्त आज भी मौज मार रहा है और उसूलपसंद नुक्सान पे नुक्सान उठा रहा है।
शासक भी मौक़ापरस्त हैं और इस देश की अधिकतर जनता भी इंसानी उसूलों से ग़ाफ़िल है। इनमें से किसी ने भी जलियांवालां बाग़ के मज़लूमों को याद तक न किया। ऐसी जनता अगर दुखी है तो अपने दुख के पीछे वह खुद है। यह जनता चाहती है कि कोई आए और उसके दुख दूर कर दे। 
जनता ऐसा करिश्मा चाहती है जिससे उसकी तक़दीर चमक जाए और उसे कुछ भी न करना पड़े, उसे कोई कुरबानी भी न देनी पड़े। यहां तक कि नशा, दहेज और फ़िजूलख़र्ची तक भी न छोड़नी पड़े। कोई कुरबानी देनी ही पड़े तो वह कुरबानी भी उसकी जगह कोई और आकर दे दे। 
पहले के लोग फिर भी बेहतर थे, दूसरों की भलाई की ख़ातिर वे अपनी जानें कुरबान कर गए लेकिन अब तो लोग अपने पड़ोसी से उसका हाल चाल पूछने में भी अपने समय की बर्बादी मानते हैं, ऐसे में अपनी जान देने कौन आएगा ?
पिछले शहीदों के साथ जो बर्ताव देश के नेता और आम लोग कर रहे हैं, उसे देखकर किसका दिल चाहेगा कि वह अपनी जान कुरबान करके अपने परिवार को तबाह कर दे और वह भी दूसरों के ऐशो आराम की खातिर ?
शहादत के बाद शहीदों के भटकते परिजनों की व्यथा-कथा अख़बारों में जब-तब छपती ही रहती है।
मरने के बाद अगर सभी लोग मिलकर शहीदों को याद कर भी लें तो भी शहीदों को उनकी याद से क्या फ़ायदा मिलने वाला है ?
उन्हें याद करने से उन्हें तो कोई फ़ायदा नहीं होता लेकिन हमें कई फ़ायदे ज़रूर होते हैं। 
हमें यह फ़ायदा होता है कि हम अहसान फ़रामोशी के ऐब में गिरफ़्तार नहीं हो पाते।
बिना किसी लालच के दूसरों की भलाई के लिए कुरबानी देना एक आला किरदार है। ऐसे आला किरदार के लोगों का चर्चा बार-बार आने से समाज में नेकी और आदर्श का चर्चा होता रहता है और लोग जिस चीज़ को बार बार देखते और सुनते हैं, उसे करते भी हैं। इस तरह बुराई के ख़ात्मे के लिए लड़ने वालों का ज़िक्र नए लड़ने वालों को तैयार करता रहता है और जिस समाज में लगातार ऐसे लोग तैयार होते रहें, वह समाज नैतिक रूप से तबाह होने से बचा रहता है।
आप ग़ौर करेंगे तो और भी बहुत से फ़ायदे आपके सामने आ जाएंगे और उन्हें याद न करने का नुक्सान तो आपके सामने है ही।
आज हमारी जो हालत है, उसका ज़िम्मेदार न तो ईश्वर है, न हमारा भाग्य और न ही कोई विदेशी ताक़त बल्कि इसके ज़िम्मेदार सिर्फ़ और सिर्फ़ हम हैं। जिन लोगों ने हमारे लिए कष्ट उठाए और हमारे लिए अपनी जानें दीं हैं और आज भी हमारे लिए हमारे सैनिक सीमा पर रोज़ाना कुरबानियां दे रहे हैं, उन्हें सम्मान देना, उन्हें याद रखना और उनके परिजनों के लिए अपने दिल में आदर-सम्मान का भाव रखना, यह ऐसी आदतें हैं, जिन्हें हमें सामूहिक रूप से अपने अंदर विकसित करनी होंगी ताकि अगर कोई देश और समाज की बेहतरी के लिए कुछ करना चाहे तो उसके दिल में यह ख़याल न आए कि इन नालायक़ों के लिए ख़ामख्वाह कष्ट उठाने से क्या फ़ायदा ? 

Friday, April 8, 2011

कैसे होता है सकारात्मक लेखन के लिए ब्लॉगर्स का हौसला पस्त ? An Alarming Call

मैं इंसानों के बीच लगभग 40 साल गुज़ार चुका हूं और डेढ़ साल ब्लागर्स के साथ भी कबड्डी से लेकर खो खो और शतरंज तक कई तरह के गेम खेल चुका हूं। इस लंबे अर्से के तजर्बे के बाद मैं कह सकता हूं कि आदमी शांति चाहता है लेकिन उसे मज़ा हंगामों में आता है। ब्लॉग जगत में फैले भ्रष्टाचार और पक्षपात को जड़ से उखाड़ फेंकने की मुहिम में मुझे जिन लोगों की ग़लती को चिन्हित करना पड़ा उनमें से एक मशहूर वकील साहब भी हैं। इसी क्रम में दो पोस्ट में महापत्रकार अजय कुमार झा जी का नाम मजबूरन लेना पड़ा। उन्होंने हमें सलाह दी कि
‘वक्त को समझिए डॉण् साहब ए उर्जा को अगर सही दिशा मिले तो ही वो सृजन करती है।‘
उनकी बात बिल्कुल सही थी, सो हमने फ़ौरन उस पर अमल किया और एक सकारात्मक संदेश देने वाली पोस्ट तैयार करके हिंदी ब्लॉग जगत के सुपुर्द कर दी।
अब सुनिए कि हमारी तीनों पोस्ट के साथ हुआ क्या ?
पहली दोनों पोस्ट्स में से तो एक को 27 पाठकों ने देखा और उस पर 8 कमेंट हुए। दूसरी पोस्ट को 35 लोगों ने देखा और उस पर 7 कमेंट हुए।
तीसरी सकारात्मक और सृजनात्मक पोस्ट को कुल 7 पाठकों ने पढ़ा और उस पर कमेंट शून्य है। अजय कुमार झा जी भी उस पर कमेंट देने नहीं आए, जिन्होंने मुझे ऐसा करने की सलाह दी थी। ईमानदारी का दंभ भरने वाले कुछ गुटबंद ब्लॉगर्स, जो कि आए दिन ऐसी ही सलाहें देते घूमते हैं, उनमें से भी कोई इस पोस्ट पर ‘नाइस पोस्ट‘ लिखने नहीं आया।
यह कैसी दुनिया है कि किसी की टांग खींचो तो तुरंत 50 आदमी आ जाएंगे और कमेंट भी देंगे और सलाह भी देंगे कि आप ऐसा करें और आप वैसा करें और जब आप उनकी सलाह के मुताबिक़ सकारात्मक लेखन करेंगे तो फिर न आपको उनमें से कोई पढ़ने आएगा और न ही आपको कमेंट देने के लिए।
सारी हालत आपके सामने है क्योंकि मेरी तीनों पोस्ट आप हमारी वाणी के बोर्ड पर देख सकते हैं। यह बात सकारात्मक लेखन के लिए ब्लॉगर्स का हौसला पस्त करने के लिए काफ़ी है। 
क्या यह सही हो रहा है ?
आज यह विषय एक गंभीर चिंतन और आत्ममंथन मांगता है, जिसे हिंदी और मानवता के हित में ईमानदारी से और जल्दी से जल्दी किया जाना ज़रूरी है।

1- दो ब्लॉग पर एक ही पोस्ट , अजय जी के साहस को हमारा सलाम मय 11 तोप के गोलों के साथ इसलिए कि शायद सोने वाले जाग जाएं भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ Corruption
2- अजय कुमार झा जी ने सचमुच ही चार चांद लगा दिए हमारी वाणी को - Anwer Jamal
3- बोलने से पहले खूब सोच लेने से आदमी बहुत सी बुराईयों से बच जाता है The Word

Thursday, April 7, 2011

अजय कुमार झा जी ने सचमुच ही चार चांद लगा दिए हमारी वाणी को - Anwer Jamal

हमारी वाणी का दावा है कि वह नियम भंग करने वाले का धर्म, लिंग और उसका प्रभाव नहीं देखती। अगर कोई भी ब्लॉगर उसका नियम भंग करता है तो वह तुरंत कार्रवाई करती है। अगर ऐसा है तो शायद इस बार अपने महापत्रकार अजय कुमार झा जी पर हमारी वाणी कोई कार्रवाई कर बैठे।
आज हमने देखा कि हमारी वाणी के बोर्ड पर एक ही आदमी के तीन फ़ोटो नज़र आ रहे हैं। हमने सोचा कि अब तो यहां सलीम ख़ान भी नहीं हैं और हमने भी अपने पर-पुर्ज़े समेट लिए हैं तब आखि़र कौन है यह तो द्विवेदी जी की हमारी वाणी का सौंदर्य नष्ट करने पर तुला हुआ है। ग़ौर से देखा तो पता चला कि यह तो अपने अजय कुमार झा जी हैं। उन्हें देखकर दिल को तसल्ली हुई कि ये तो ब्राह्मण हैं, इनसे तो हमारी वाणी का सौंदर्य नष्ट होने का सवाल ही नहीं है। अगर ये एक पोस्ट और कर देते तो उल्टे चार चांद और लग जाते। हम अभी यह सोच ही रहे थे कि उनकी एक पोस्ट और नाज़िल हो गई और सचमुच ही चार चांद लगा दिए उन्होंने। हमने जाकर पोस्ट पढ़ी तो दो पोस्ट तो बिल्कुल एक ही हैं। उनके शीर्षक में भी ज़्यादा अंतर नहीं किया गया है।
आदमी क़ाबिल हैं। अन्ना जी का मुददा है। सब कुछ सही लेकिन हमारी वाणी का दावा है कि वह नियम भंग करने वाले पर कार्रवाई करती है और वह धर्म, लिंग और ब्लॉगर के रूतबे को नहीं देखती।
देखते हैं कि अब अजय जी के दो ब्लॉग का निलंबन होता है या फिर एक का या फिर उन्हें मात्र चेतावनी ही देकर छोड़ दिया जाएगा ?
अजय जी की चारों पोस्ट्स के लिंक निम्न हैं। आप भी जाएं और अन्ना जी का समर्थन करें।
1- http://jholtanma-biharibabukahin.blogspot.com/2011/04/2.html
2- http://aajkamudda.blogspot.com/2011/04/1.html
3- http://khabarokikhabar.blogspot.com/2011/04/3.html
4- http://ajaykumarjha1973.blogspot.com/2011/04/blog-post_07.html

.जैसे ही हमारी पोस्ट पब्लिश वैसी ही अजय जी ने पलती मरकर पोस्ट ही बदल डाली .
http://jholtanma-biharibabukahin.blogspot.com/2011/04/2.हटमल
इस लिंक पर जो पोस्ट नज़र आ रही है ठीक वही पोस्ट नज़र आ रही थी निम्न लिंक पर
http://aajkamudda.blogspot.com/2011/04/1.html
लेकिन अब इस पर नज़र आ रही है
'जन लोकपाल बिल क्या है ?'
हम तोप के गोले छोड़ते और सलामी देते ही रह गए उनके साहस को और वह मैदान ही छोड़ भागे .
खैर यह तो नेट है मिटने के बावजूद भी पुराना रिकार्ड देखना मुमकिन है .  

दो ब्लॉग पर एक ही पोस्ट , अजय जी के साहस को हमारा सलाम मय 11 तोप के गोलों के साथ इसलिए कि शायद सोने वाले जाग जाएं भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ Corruption

Friday, February 11, 2011

आवागमन महज़ एक मिथकीय कल्पना है Awagaman

क्या मौत के बाद भी जीवन है ?
और अगर है तो कैसे और कहां ?
दुनिया के हरेक इंसान के मन में यह सवाल उठता है और दुनिया के तमाम दार्शनिकों ने इस विषय में तरह तरह की कल्पनाएं भी की हैं। आवागमनीय पुनर्जन्म की कल्पना एक ऐसी ही कल्पना है जिसका आधार दर्शन है न कि ईशवाणी।
इसलाम ऐसी कल्पना को असत्य मानता है। इसलाम के अनुसार इंसान की मौत के बाद उसके शरीर के तत्व प्रकृति के तत्वों में मिल जाते हैं लेकिन उसका ‘नफ़्स‘ अर्थात उसके वुजूद की असल हक़ीक़त, उसकी रूह आलमें बरजख़ में रहती है और वहां अपने अच्छे-बुरे अमल के ऐतबार से राहत और मुसीबत बर्दाश्त करती है। एक वक्त आएगा जब धरती के लोग अपने पापकर्मों की वजह से धरती का संतुलन हर ऐतबार से नष्ट कर देंगे और तब क़ियामत होगी। धरती और धरती पर जो कुछ है सभी कुछ नष्ट हो जाएगा। एक लम्बे अंतराल के बाद वह मालिक फिर से एक नई सृष्टि की रचना करेगा और तब हरेक रूह शरीर के साथ इसी धरती से पुनः उठाई जाएगी। इस रोज़े क़ियामत में अगले-पिछले, नेक-बद, ज़ालिम और मज़लूम सभी लोग मालिक के दरबार में हाज़िर होंगे और तब मालिक खुद इंसाफ़ करेगा। उसकी दया से बहुतों की बख्शिश होगी, बहुतों का उद्धार होगा लेकिन फिर भी ऐसे मुजरिम होंगे जिन्होंने ईश्वरीय विधान की धज्जियां उड़ाई होंगी, वे समझाने के बावजूद भी न माने होंगे, अपनी खुदग़र्ज़ी के लिए उन्होंने इंसानों का खून चूसने और बहाने में कोई कमी हरगिज़ न छोड़ी होगी। इन्हें उम्मीद तक न होगी कि कभी इन्हें अपने जुल्म और ज़्यादती का हिसाब अपने मालिक को भी देना है। ऐसे मुजरिम उस दिन अपने रब की सख्त पकड़ में होंगे। उस पकड़ से उन्हें उस रोज़ न तो कोई ताक़त और दौलत के बल पर छुड़ा पाएगा और न ही कुल-गोत्र और सिफ़ारिश के बल पर। उस दिन इंसाफ़ होगा, ऐसा इंसाफ़ जिसके लिए दुनिया में आज हरेक रूह तरस रही है। जो ईमान वाले बंदे होंगे, उन्हें उनकी नेकी और भलाई के बदले में सदा के लिए अमन-शांति की जगह जन्नत में बसा दिया जाएगा और दुनिया में आग लगाने वाले संगदिल ज़ालिमों को सदा के लिए जहन्नम की आग में झोंक दिया जाएगा। न तो आलमे-बरज़ख़ से कोई रूह लौटकर इस ज़मीन पर दोबारा किसी गर्भ से जन्म लेती है और न ही जन्नत या जहन्नम से ही कोई रूह यहां जन्म लेगी।
पाप के लगातार बढ़ने के बावजूद दुनिया की आबादी में रोज़ इज़ाफ़ा ही हो रहा है । जिससे यही पता चलता है कि आवागमनीय पुनर्जन्म महज़ एक दार्शनिक कल्पना है न कि कोई हक़ीक़त। अगर वास्तव में ही आत्माएं पाप करने के बाद पशु-पक्षी और पेड़-पौधों की योनियों में चली जाया करतीं तो जैसे जैसे पाप की वृद्धि होती, तैसे तैसे इंसानी आबादी घटती चली जाती और निम्न योनि के प्राणियों की तादाद में इज़ाफ़ा होता चला जाता, जबकि हो रहा है इसके बिल्कुल विपरीत। इसी तरह दूसरे कई और तथ्य भी यही प्रमाणित करते हैं।

Tuesday, February 8, 2011

‘नफ़रतों का हो ख़ात्मा , इस्लाम इस हक़ीक़त का ऐलान है‘ Divine unity


फलाहारी बाबा के साथ संतुलित आहारी अनवर जमाल
आपका भाई अनवर जमाल, निज़ामुद्दीन दिल्ली में
डाक्टर असलम क़ासमी


Dr. Ziauddin Ahmad, Assistant Director (Unani Medicine),
Ministry of health and family welfare , govt . of इंडिया &
Mr . R . S. Adil Advocate (Left)
मानव जाति एक है। इस्लाम इस हक़ीक़त का ऐलान है। इस्लाम के मानने वालों ने खुद कई मत बनाए और एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाए और कई बार वे इसमें हद से आगे भी निकल गए। इसका नुक्सान उन्हें हुआ और उनके साथ मुल्क और दुनिया की दूसरी क़ौमों को भी हुआ। दूसरी क़ौमों से उन्हें व्यंग्य भी सुनने को मिले और यह स्वाभाविक था। दूसरी क़ौमों के तर्ज़े अमल और उनके सुलूक ने उन्हें अपना जायज़ा लेने पर मजबूर किया और कुछ दूसरे दुखदायी हादसों ने उन्हें बताया कि सबके लिए एकता ही नफ़ाबख्श और बेहतर है।
पिछले दिनों हमारे एक सत्यसेवी मित्र जनाब सुहैल ख़ान साहब का रामपुर (उ.प्र.) से फ़ोन आया और उन्होंने बताया कि कल यानि कि दिनांक 27 जनवरी 2011 को रामपुर में तमाम मुस्लिम मतों के ज़िम्मेदारों ने अपने इख्तेलाफ़ात भुलाकर एक जमाअत गठित की है, जिसका नाम ‘इत्तेहादे मिल्लत‘ रखा गया है। इसके अध्यक्ष बरेलवी समुदाय से हैं जिनका नाम है सज्जादानशीन जनाब फ़रहत जमाली। ये रामपुर की सबसे बड़ी दरगाह हाफ़िज़ शाह जमालुल्लाह साहब के सज्जादे हैं। इसका सचिव जनाब हामिद रज़ा खां साहब को चुना गया है। हामिद साहब सुहैल भाई की तरह ‘वेद-कुरआन‘ के संदेश का प्रचार एक लंबे समय से कर रहे हैं। उनके अलावा बहुत से भाई-बहन ऐसे हैं जो विश्व एकता के लिए काम कर रहे हैं। इन्हीं भाईयों की दुआओं और कोशिशों का नतीजा है कि रामपुर में सभी मुस्लिम फ़िरक़ों के ज़िम्मेदारों ने एकता की ओर क़दम बढ़ाए। मालिक उनसे सेवा का काम ले, केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि हरेक इंसान के लिए।
‘नफ़रतों का ख़ात्मा हो‘ ऐसी ख्वाहिश सिर्फ़ रामपुर वालों की ही नहीं है बल्कि रामपुर से बाहर भी ऐसी ही ख्वाहिश देखी जा सकती है। कल एक ब्लागर प्लस मीटिंग में भी यही देखने में आया। समाज से नफ़रतों का ख़ात्मा हो और लोगों में एक दूसरे के प्रति विश्वास बहाल हो, लोगों का चरित्र और उनकी आदतें बेहतर हो, मुल्क और समाज में अमन क़ायम रहे, लोग उस वचन को पूरा करें जो कि वे नमाज़ में रोज़ाना अपने मालिक से करते हैं और वे कुरआन के बताए उस सीधे रास्ते पर चलें जिसकी दुआ वे खुद नमाज़ में बार-बार करते हैं। इस मक़सद के लिए ‘अंजुमन ए तहफ़फ़ुज़े इस्लामी (रजिस्टर्ड) काफ़ी समय से अपने स्तर पर कोशिश करती आ रही है। इस अंजुमन की बुनियाद दिल्ली में जनाब रफ़ीक़ अहमद साहब, एडवोकेट ने रखी थी। आजकल इसके सद्र जनाब मुहम्मद ज़की साहब हैं। इस तंज़ीम के सभी सदस्य उच्चशिक्षित और समाज के प्रभावशाली लोग हैं। वे देश विदेश के बड़े-बड़े मुस्लिम स्कॉलर्स के प्रोग्राम कराते आये हैं। जनाब ऐजाज़ हैदर आर्य साहब, डिप्टी डायरेक्टर आल इंडिया उर्दू तालीम घर लखनऊ के ज़रिये हमारी कोशिशें उनके इल्म में आईं तो उन्होंने हमसे मिलने की ख्वाहिश ज़ाहिर की। एक्सीडेंट की चोटें तो तक़रीबन ठीक हो चुकी थीं लेकिन मैं थोड़ा सा बीमार था और फिर अगले ही इतवार को जनाब डाक्टर अयाज़ अहमद साहब की शादी में भी दिल्ली जाना था। मैं कुछ कशमकश में था लेकिन मास्टर अनवार अहमद साहब और डाक्टर अयाज़ साहब ने कह दिया कि आपको तो चलना ही पड़ेगा। बहरहाल हम चले और पहुंच गए दिल्ली। सबसे पहले पहुंचने वालों में हम तीन लोग थे मैं खुद, डाक्टर असलम क़ासमी और मास्टर अनवार साहब। थोड़ी ही देर बाद डाक्टर अयाज़ साहब भी कुछ और साथियों के साथ पहुंच गए और इसी दरमियान उनकी अंजुमन के लोग भी आना शुरू हो गए और उनके बुलाए हुए मेहमान भी। हम सभी का एक दूसरे से तआर्रूफ़ हुआ और फिर हरेक ने अपनी अपनी सोच और तजर्बों को भी शेयर किया। इसी बीच नाश्ता भी हुआ, जुहर की नमाज़ भी हुई और फिर लंच भी हुआ।
लंच में कितनी तरह की वेज और नॉनवेज डिशेज़ थीं, उनके न तो नाम ही पता हैं और न ही ठीक से उन्हें गिनना ही संभव है। यही हाल फलों, चटनियों और मिठाईयों का था। जनाब मुहम्मद ज़की साहब ने अपनी तरफ़ से अहतमाम में किसी भी तरह की कोई कमी न छोड़ी थी। इस बीच वे और उनके साहबज़ादे खड़े रहे और इसरार करके खिलाते रहे। खाने की तारीफ़ करते हुए जनाब आर. एस. आदिल साहब ने कहा कि साहब अगली बार का इंतज़ार रहेगा। उनकी इस सीधी और बिल्कुल सही बात पर सभी मुस्कुरा दिए।
जनाब आर. एस. आदिल साहब ने इस्लाम को एक जीवन पद्धति के तौर पर स्वीकार करने के बाद एक संक्षिप्त पुस्तिका भी लिखी है जिसका नाम है ‘डा. अंबेडकर और इस्लाम‘। यह किताब हिंदुस्तान में बहुत मक़बूल हुई और कई भाषाओं में इसका अनुवाद भी हुआ। उनका कहना है कि मैंने डाक्टर अंबेडकर का साहित्य इतना ज़्यादा पढ़ा है कि शायद किसी अंबेडकरवादी ने भी इतना ज़्यादा न पढ़ा हो। आदिल साहब एक एडवोकेट भी हैं। उनके दो जवान बेटे भी उनके साथ आए थे। इस मजलिस में एक और नौजवान इबराहीम दानिश अलसऊद साहब से भी मुलाक़ात हुई जो कि अपने वालिद साहब के साथ जामा मस्जिद दिल्ली से तशरीफ़ लाये थे।
डाक्टर ज़ियाउद्दीन अहमद साहब से भी यहीं मुलाक़ात हुई। ये दिल्ली में एक ऊंचे ओहदे पर काम करते हैं।
दिल चाहता था कि हम दिल्ली में हैं तो कम से कम शाहनवाज़ भाई से तो मुलाक़ात हो ही जाए। उन्हें हमने बुलाया तो मालूम हुआ कि आज उनके छोटे भाई के आफ़िस की ओपनिंग है लेकिन फिर भी वे थोड़ी देर के लिए आए और लंच से पहले ही चले गए। लंच के बाद भी समाज की बेहतरी के लिए कुछ किए जाने को लेकर बातें होती रहीं। जनाब शमीम अहमद साहब और जनाब रफ़ीक़ अहमद एडवोकेट साहब ने बार बार इस बात पर ज़ोर दिया कि मसलक की बुनियाद पर बंटवारे का ख़ात्मा होना चाहिए। जनाब ज़की साहब ने डाक्टर असलम क़ासमी साहब से पूछा कि क्या ज़कात की रक़म को दावती कामों में ख़र्च किया जा सकता है। डाक्टर असलम क़ासमी साहब ने बताया कि ‘मौल्लिफ़तुल कुलूब‘ की एक मद ज़कात के मसरफ़ में शामिल है और यह मद दावत की मद में ही आती है।
जब मसलकी नफ़रतों के ख़ात्मे का ज़िक्र आया तो मैंने जनाब सय्यद मुहम्मद मासूम साहब का भी उड़ता हुआ सा ज़िक्र किया और कहा कि ऐसे लोग आज भी मौजूद हैं और हरेक मसलक में हैं जिनके दिल अपने मसलक के उसूलों की पाबंदी के बावजूद नफ़रत से ख़ाली हैं। ऐसे लोग आज भी ‘अमन का पैग़ाम‘ दे रहे हैं।
कब वक्त गुज़र गया, पता ही नहीं चला और जब हम घर वापस पहुंचे तो रात के 11 से ज़्यादा बज चुके थे।
इस नशिस्त का ज़िक्र मुकम्मल करने से पहले मैं यह भी बताना चाहूंगा कि हमने दिल्ली में महंत स्वामी रामकृष्ण दास जी से भी मुलाक़ात की। वृंदावन में इन्हें फलाहारी बाबा के नाम से जाना जाता है और परिक्रमा मार्ग पर ‘श्री गोरेदाऊ आश्रम‘ के नाम से इनका आश्रम है। स्थायी रूप से ये ‘श्री बद्रीनारायण मंदिर, शांति आश्रम, जिलतरी घाट, जबलपुर (म.प्र.)‘ में रहते हैं। हमने बाबा जी को ‘वंदे ईश्वरम्‘ पत्रिका के साथ एक पुस्तिका ‘आपकी अमानत आपकी सेवा में‘ भेंट की। जिसे देखकर उन्होंने बहुत सराहा। उनके साथ हमारी मुलाक़ात अच्छी रही। उनसे मिलकर हम निज़ामुद्दी वेस्ट पहुंचे। जहां यह उम्दा नशिस्त अंजाम पाई और जहां सभी हाज़िरीने मजलिस ने मुल्क और समाज की बेहतरी के लिए नफ़रतों को मिटाने के लिए आपस में एक दूसरे की हर संभव मदद करने का संकल्प लिया। दरअस्ल संकल्प तो ये सभी लोग पहले से ही लिये हुए थे। इस मजलिस में तो उसे मिलकर दोहराया भर था ताकि संकल्प ताज़ा हो जाए।
उन्होंने हमें ‘ग़लतफ़हमियों का निवारण‘ और ‘इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद साहब‘ ये दो किताबें दर्जनों से भी ज़्यादा भेंट कीं। इन दोनों किताबों को आप ‘इस्लाम इन हिन्दी‘ पर देख सकते हैं।

Monday, February 7, 2011

A blogger plus meeting in Delhi


कल दिल्ली में एक ब्लोगर प्लस मीटिंग हुई. जिसमें कुछ अहम् मुद्दों पर बात हुई .
इसके बारे में जानकारी बाद में दी जाएगी पहले आप इन फ़ोटोज़  का लुत्फ़ उठाइए .
इस मीटिंग में जिन लोगों को आप जानते हैं उनमें  एक तो मैं खुद ही हूँ .
डाक्टर असलम क़ासमी, डाक्टर अयाज़ अहमद और शाहनवाज़ भाई भी इस उम्दा मीटिंग में मौजूद थे.
इस मीटिंग में सभी मुस्लिम थे जो कि उच्च शिक्षित भी थे और सभी दिल्ली में ऊंचे ओहदों पर मुल्क के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं .