अक्सर लोग उपदेश भी बेमन से सुनते हैं और क़ानून की पाबंदी भी फ़िज़ूल समझते हैं। इस तरह अनुशासन और संयम से हीन लोगों की भीड़ वुजूद में आ जाती है जो ख़ुद तो अपने हक़ से ज़्यादा पाना चाहते हैं और दूसरों को उनका जायज़ हक़ तक नहीं देना चाहते। इस तरह समस्याएं जन्म लेती हैं और इनका कारण पिछले जन्म के पाप नहीं बल्कि इसी जन्म की अनुशासनहीनता होती है।
इंसान के अंदर डर और लालच, ये दो प्रवृत्तियां होती हैं। ईश्वर में विश्वास और धर्म के पालन से इनमें संतुलन बना रहता है लेकिन ठगों ने ईश्वर के आदेश छिपा कर अपने उपदेश समाज में फैला दिए और इसका नतीजा यह हुआ कि धर्म का लोप हो गया और ईश्वर और धार्मिक परंपराओं के नाम पर लूट और अत्याचार का बाज़ार गर्म हो गया, किसी एक देश में नहीं बल्कि सारी दुनिया में। बुद्धिजीवियों ने यह देखा तो उनका विश्वास धर्म से उठ गया और उन्होंने ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व को ही नकार दिया। अतः पढ़े लिखे लोगों में यह धारणा बन गई कि ईश्वर है ही नहीं तो ईनाम या सज़ा कौन देगा ?
और जब आत्मा ही नहीं है तो फिर ईनाम या सज़ा का मज़ा भोगेगा कौन ?
इसके बाद तार्किक परिणति यही होनी थी कि दुनिया में ज़ुल्म का बाज़ार गर्म हो जाए और यही हुआ भी । पढ़े-लिखे और समझदार (?) अर्थात नास्तिक लोगों का मक़सद केवल प्रकृति पर विजय पाकर ऐश का सामान इकठ्ठा करना ही रह गया।
ईश्वर और धर्म का इन्कार करने वालों ने दुनिया को बर्बाद करके रख दिया और इन लोगों का विश्वास जिन ठगों ने हिलाया है वे मानवता के इससे भी ज़्यादा मुजरिम हैं।
मंदिर या मस्जिद में जाने से ही आदमी धार्मिक नहीं बन जाता। ये धार्मिक कर्मकांड तो रावण और यज़ीद दोनों ही करते थे। आदमी का धर्म उसके आचरण से प्रकट होता है। धर्म के लक्षण हरेक भाषा की किताब में लिखे हुए हैं और वे सत्य, न्याय , उपकार और क्षमा आदि हैं कि अगर इन्हें अपना लिया जाए तो आदमी की मेंटलिटी क्राइम फ़्री हो जाएगी। मानने वाले लोग पहले भी ईश्वर की कृपा पाने के लिए ही उसकी व्यवस्था का पालन करते थे और आज भी करते हैं। संविधान का पालन ख़ुद ब ख़ुद ही हो जाता है।
ये सिक्के आज भी चल रहे हैं। अपनी वासनाओं में डूबे हुए लोगों का अपनी मुसीबत में ईश्वर-अल्लाह को याद करना इसी का प्रमाण है।
इसी बात को आप नीचे दिए गए लिंक पर भी देख सकते हैं :
आदमी का धर्म उसके आचरण से प्रकट होता है
1- http://www.amankapaigham.com/2011/07/blog-post_11.html?showComment=1310397703955#c4491598195124013322
Monday, July 11, 2011
Tuesday, June 21, 2011
पिछले जन्म की ख़बरें देने वाले बच्चों की हक़ीक़त
अख़बारों में और टी. वी. चैनल्स पर आए दिन कुछ ऐसे बच्चे दिखाए जाते हैं जो बताते हैं कि वे पिछले जन्म में अमुक व्यक्ति थे और उनकी मौत ऐसे और ऐसे हुई थी और जब जाकर देखा जाता है तो कुछ बच्चे वाक़ई सच बोल रहे होते हैं। वे उन जगहों पर भी जाते हैं जहां उन्होंने कुछ गाड़ रखा होता है और उनके अलावा कोई और उन जगहों को नहीं जानता। वे खोदते हैं तो वहां सचमुच कुछ चीज़ें भी निकलती हैं। इस तरह के बच्चे भी जैसे जैसे बड़े होते चले जाते हैं। वे भूलते चले जाते हैं कि वे सब बातें जो वे पहले बताया करते थे जबकि वे अपने बचपन की बातें नहीं भूलते।
दरअस्ल उस बच्चे का यहां पनर्जन्म हुआ ही नहीं होता है और जो कुछ वह बता रहा था, उसे भी वह अपनी याददाश्त से नहीं बता रहा था। हक़ीक़त यह है कि हमारे अलावा भी हमारे चारों ओर अशरीरी चेतन आत्माएं मौजूद हैं। इन्हीं में कुछ आत्माएं किसी कमज़ोर मन को अपनी ट्रांस में लेकर बच्चे के मुंह से वही बोल रही होती हैं। जेनेरली इन्हें शैतान की श्रेणी में रख दिया जाता है क्योंकि ये परेशान करती हैं। इनके इलाज के लिए हम बच्चे को अज़ान सुनाते हैं। उसमें मालिक का पाक नाम है और उसकी बड़ाई का चर्चा है। एक बार ऐसा ही केस हमारे एक बुज़ुर्ग दोस्त मौलाना कलीम सिद्दीक़ी साहब के सामने लाया गया। उनके सामने भी वह बच्चा पिछले जन्म की बातें बताने लगा। इसी दरम्यान मौलाना चुपके से अज़ान के अल्फ़ाज़ दोहराए और चुपके से उस बच्चे पर फूंक मारी। यह अज़ान जब उस पर सवार शैतान आत्मा ने सुनी तो वह भाग खड़ी हुई। पिछले जन्म की बातें बताते बताते बच्चा अचानक ही ख़ामोश हो गया।
मौलाना ने बच्चे से पूछा कि हां, बताओ बेटा और क्या हुआ था आपके साथ पिछले जन्म में ?
तो वह चुप हो गया क्योंकि उसके मुख से जो बता रहा था वह तो भाग ही चुका था।
हिन्दू भाईयों के सामने इस तरह की घटनाएं आती हैं तो उन्हें लगता है कि आवागमन की उनकी मान्यता का प्रमाण हैं ये घटनाएं। वे इन्हें अजूबा बना लेते हैं। वे ऐसे बच्चों का रूहानी या मानसिक इलाज कराने के बजाय उन्हें सेलिब्रिटी बना लेते हैं। अख़बार वाले उनका इंटरव्यू छापते हैं और चैनल वाले भी अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए इन मासूम बच्चों का इस्तेमाल करते हैं।
हालांकि इन बच्चों के माता-पिता अज़ान सुनाकर इन्हें स्वस्थ कर सकते हैं और इस भ्रमजाल से अपने बच्चों के साथ ख़ुद को भी मुक्ति दिला सकते हैं।
अगर वे अज़ान न भी सुनाना चाहें वे अपनी भाषा के पवित्र मंत्र पढ़कर आज़मा सकते हैं। मालिक के पाक नाम तो हिंदी-संस्कृत में भी हैं और इन भाषाओं में उस मालिक की महानता का चर्चा भी है।
हरेक बच्चा इस दुनिया में फ़्रेश आता है। यह तर्क से तो साबित है ही, अनुभव से भी साबित हो चुका है।
अगर कोई इलाज न भी कराया जाए तब भी जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है और उसका मन मज़बूत होता जाता है। वह अज्ञात आत्मा की ट्रांस से ख़ुद ही मुक्त होता चला जाता है।
यह बात केवल कुछ बच्चों के लिए ही है। कुछ बच्चों के दावे तो अनुसंधान के बाद केवल माता पिता के सिखाने का परिणाम भी साबित हुए हैं। किसी बड़े आदमी के परिवार से अर्थलाभ की ख़ातिर माता-पिता ने अपने बच्चों को कुछ बातें रटवा दी थीं।
बहरहाल यह दुनिया है। सच्ची बात केवल मालिक जानता है और वही बता भी सकता है कि हक़ीक़त क्या है ?
जो बंदा उसे मानता है, उसकी वाणी को मानता है। वह इन सब छल फ़रेब का शिकार नहीं बनता। वह न किसी आवागमन को मानता है और न ही आवागमन से मुक्ति के प्रयास में जंगल में जाकर बेकार की साधनाएं करता है।
इंसान मुक्त ही पैदा हुआ है। उसे चाहिए कि वह समाज में रहे। अपने कर्तव्यों का पालन करे। अपने इरादे से कोई पाप न करे और अगर कोई हो जाए तो तुरंत उस कर्म को त्याग दे। उसका प्रभु पालनहार उससे केवल यही चाहता है।
इस संबंध में इसी चर्चाशाली मंच की एक पोस्ट और भी उपयोगी है
आवागमन महज़ एक मिथकीय कल्पना है Awagaman
और आप एक नज़र इस पोस्ट पर भी डाल सकते हैं
http://zealzen.blogspot.com/2011/06/blog-post_22.html?showComment=1308721446104#c8240670385752030936
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http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/8910218.cms
Tuesday, June 7, 2011
'साधु और संग्रह' - Shiv Kumar Goyal
शिवकुमार गोयल जी एक लेखक हैं। आज 'अंतर्यात्रा' कॉलम में मैंने उनके एक छोटे से लेख 'साधु और संग्रह' पढ़ा जो कि अमर उजाला दिनाँक 14 मार्च 2011 के अंक में पृष्ठ सं. 12 पर छपा है। उसका एक अंश यहाँ उद्धृत है :
'संसार से वैराग्य होने पर कुछ लोग गृहस्थी त्यागकर साधु -संयासी बन जाते हैं। वे कई बार आधुनिकता की चकाचौंध में फँसकर भगवत भजन और सांसारिक लोगों का मार्गदर्शन करने के बजाए चेले बनाने और भव्य आश्रमों के निर्माण में लग जाते हैं। यह ग़लत है। विरक्त संत उड़िया बाबा कहा करते थे ,'यदि सांसारिक ऐश्वर्य में जीने की लालसा है तो साधु बनने की क्या आवश्यकता थी ? असली साधु-संयासी के लिए तो धर्म ग्रंथों में किसी भी प्रकार के संग्रह वर्जित बताया गया है , तो फिर चेले-चेलियाँ बनाने और आश्रम तैयार करने की आकांक्षा पालना उचित नहीं।'
आज के समय में अब उसे ही बड़ा संत माना जाता है , जिसके आश्रम जहाँ-तहाँ फैले होते हैं। इन कथित संतों के शास्त्र विरुद्ध और मर्यादाहीन जीवन जीने के दुष्परिणाम भी अब सामने आ रहे हैं।'
इस अहम चर्चा को आप ‘परिचर्चा‘ पर भी देख सकते हैं:
और भाई ख़ुशदीप जी की चर्चा भी एक यादगार चर्चा है। यह चर्चा अपने आप में एक आईना है।
Monday, April 25, 2011
क्या यह संभव है कि भगवान ही न रहे ? God is immortal .
साईं कहते हैं मालिक को और जब सत्य शब्द भी इसके साथ लग जाता है तो यह नाम ईश्वर के लिए विशेष हो जाता है क्योंकि हर चीज़ का सच्चा स्वामी वही एक है जो न तो पैदा होता है और न ही उसे मौत आती है। जन्म-मरण का चक्र उसे बांधता नहीं है।
आज सुबह अख़बार में ख़बर देखी कि सत्य साईं बाबा नहीं रहे।
‘नहीं रहे‘ से क्या मतलब ?
सत्य साईं बाबा खुद को भगवान बताते थे। क्या यह संभव है कि भगवान ही न रहे ?
आदमी की मौत बता देती है कि मरने वाला भगवान और ईश्वर नहीं था लेकिन जिन लोगों पर अंधश्रृद्धा हावी होती है वे फिर भी नहीं मानते।
मैं इस विषय पर कुछ लिखना चाहता था लेकिन एक लेख पर मेरी नज़र पड़ी तो मैंने मुनासिब समझा कि इसे ज्यों का त्यों आपके सामने पेश कर दूं।
एक मंझोले जादूगर की मौत
भारत के एक मंझोले जादूगर सत्यनारायण राजू उर्फ सत्य साईं बाबा की मौत हो गई। सत्य साईं का प्रभाव 165 देशों में बताया जाता है और इनके ट्रस्ट ने कई क्षेत्रों में जनहित में काम किए हैं। इनके ट्रस्ट की दौलत 40 हजार करोड़ रुपए बताई जाती है।
सत्य साईं बाबा सचमुच में सोने की खान थे। वे कई बार अपने मुंह से सोने की गेंद, चेन और शिवलिंग निकाल चुके थे। इस तरह बाबा स्विस घड़ियों और भभूत की खान भी थे। हालांकि बाबा के ये कारनामे कोई भी औसत जादूगर कर सकता है। मैंने सुना-पढ़ा है कि भारत के महान जादूगर पीसी सरकार ने बाबा के चमत्कारों को साधारण करतब बता कर चुनौती दी थी कि वे साईं उनके सामने अपने चमत्कार दिखाएं और वे खुद वैसे ही जादू दिखाएंगे। हालांकि बाबा ने कभी यह चुनौती स्वीकार नहीं की। अब भला हाथ की सफाई दिखाने वाले जादूगर से एक चमत्कारी बाबा का क्या मुकाबला!
सत्य साईं की मौत पर मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और लाल कृष्ण आडवाणी को बहुत दुख हुआ। सचिन तेंडुलकर को भी। एक न्यूज चैनल दिखा रहा था कि सचिन इस मौत से सदमे में हैं। सचिन ने नाश्ता नहीं किया और होटेल के कमरे में खुद को बंद रखा है और किसी से भी मिलने से इंकार कर दिया। सचिन ने सत्य साईं के खराब स्वास्थ्य के मद्देनजर पहले ही घोषणा की थी कि वह अपना बर्थडे नहीं मनाएंगे। पहले खबर आई थी कि सचिन रविवार का मैच भी नहीं खेलेंगे। मेरे एक दोस्त ने टिप्पणी की कि पिता की मौत के बाद बेहतरीन पारी खेली थी और अब नहीं खेलेंगे! हालांकि बाद में सचिन ने मैच खेला।

अब इससे भी घोर कलयुग क्या आएगा कि जो बाबा भभूत से पूरी दुनिया का कष्ट दूर करता हो, उसी के इलाज के लिए विदेश से डॉक्टर आएं! हो सकता है कि बाबा की इच्छा ऐसे लोगों के बीच रहने की न रह गई हो या कौन जाने अस्पताल के बिस्तर पर लेटे बाबा ने अपनी भविष्यवाणी में सुधार किया हो लेकिन किसी ने उस पर गौर न किया हो। या क्या जाने बाबा ने 11 साल के लिए समाधि ही ली हो और नादान डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया हो!
खैर सत्य साईं की एक बात मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई। उन्होंने कहा था, ‘मैं भगवान हूं, तुम भी भगवान हो। फर्क सिर्फ इतना है कि यह मुझे पता है और
तुमको नहीं पता है।’ अफसोस कि बाबा की इस साफगोई को लोग समझ नहीं सके।
Friday, April 15, 2011
क्या हम अहसान फ़रामोश बनकर नहीं रह गए हैं ? Ungratefulness
आज लोगों ने उन मज़लूमों को भुला दिया है, जिन्होंने अंग्रेज़ी राज में 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में गोलियां खाई थीं और जिनके बदले आज देशवासी चैन से कमा-खा रहे हैं। अन्ना हजारे के आंदोलन को लेकर शोर पुकार मचाने वाले मीडिया को भी इसमें कोई कमाई नज़र न आई तो उसने भी इसे नज़रअंदाज़ करना ही मुनासिब समझा। जिन दरोग़ा और सिपाहियों ने जलियावालां बाग़ के बेकुसूरों पर गोलियां चलाई थीं, वे अंग्रेज़ी राज में भी मौज मारते रहे और उन्हें आज़ादी के बाद भी ससम्मान उनके पदों पर बहाल रखा गया। वे पहले भी मस्त रहे और बाद में भी हराम की खाते रहे जबकि आज़ादी के लिए मरने वाले अपनी जान से गए और उनके बाद उनके परिवार अंग्रेज़ों के जुल्मों के शिकार हो गए। शहीद बर्बाद हो गए और अंग्रेज़ों के पिठ्ठू चिलमचियों के दोनों हाथों में लड्डू रहे। मौक़ापरस्त आज भी मौज मार रहा है और उसूलपसंद नुक्सान पे नुक्सान उठा रहा है।
शासक भी मौक़ापरस्त हैं और इस देश की अधिकतर जनता भी इंसानी उसूलों से ग़ाफ़िल है। इनमें से किसी ने भी जलियांवालां बाग़ के मज़लूमों को याद तक न किया। ऐसी जनता अगर दुखी है तो अपने दुख के पीछे वह खुद है। यह जनता चाहती है कि कोई आए और उसके दुख दूर कर दे।
जनता ऐसा करिश्मा चाहती है जिससे उसकी तक़दीर चमक जाए और उसे कुछ भी न करना पड़े, उसे कोई कुरबानी भी न देनी पड़े। यहां तक कि नशा, दहेज और फ़िजूलख़र्ची तक भी न छोड़नी पड़े। कोई कुरबानी देनी ही पड़े तो वह कुरबानी भी उसकी जगह कोई और आकर दे दे।
पहले के लोग फिर भी बेहतर थे, दूसरों की भलाई की ख़ातिर वे अपनी जानें कुरबान कर गए लेकिन अब तो लोग अपने पड़ोसी से उसका हाल चाल पूछने में भी अपने समय की बर्बादी मानते हैं, ऐसे में अपनी जान देने कौन आएगा ?
पिछले शहीदों के साथ जो बर्ताव देश के नेता और आम लोग कर रहे हैं, उसे देखकर किसका दिल चाहेगा कि वह अपनी जान कुरबान करके अपने परिवार को तबाह कर दे और वह भी दूसरों के ऐशो आराम की खातिर ?
शहादत के बाद शहीदों के भटकते परिजनों की व्यथा-कथा अख़बारों में जब-तब छपती ही रहती है।
मरने के बाद अगर सभी लोग मिलकर शहीदों को याद कर भी लें तो भी शहीदों को उनकी याद से क्या फ़ायदा मिलने वाला है ?
उन्हें याद करने से उन्हें तो कोई फ़ायदा नहीं होता लेकिन हमें कई फ़ायदे ज़रूर होते हैं।
हमें यह फ़ायदा होता है कि हम अहसान फ़रामोशी के ऐब में गिरफ़्तार नहीं हो पाते।
बिना किसी लालच के दूसरों की भलाई के लिए कुरबानी देना एक आला किरदार है। ऐसे आला किरदार के लोगों का चर्चा बार-बार आने से समाज में नेकी और आदर्श का चर्चा होता रहता है और लोग जिस चीज़ को बार बार देखते और सुनते हैं, उसे करते भी हैं। इस तरह बुराई के ख़ात्मे के लिए लड़ने वालों का ज़िक्र नए लड़ने वालों को तैयार करता रहता है और जिस समाज में लगातार ऐसे लोग तैयार होते रहें, वह समाज नैतिक रूप से तबाह होने से बचा रहता है।
आप ग़ौर करेंगे तो और भी बहुत से फ़ायदे आपके सामने आ जाएंगे और उन्हें याद न करने का नुक्सान तो आपके सामने है ही।
आज हमारी जो हालत है, उसका ज़िम्मेदार न तो ईश्वर है, न हमारा भाग्य और न ही कोई विदेशी ताक़त बल्कि इसके ज़िम्मेदार सिर्फ़ और सिर्फ़ हम हैं। जिन लोगों ने हमारे लिए कष्ट उठाए और हमारे लिए अपनी जानें दीं हैं और आज भी हमारे लिए हमारे सैनिक सीमा पर रोज़ाना कुरबानियां दे रहे हैं, उन्हें सम्मान देना, उन्हें याद रखना और उनके परिजनों के लिए अपने दिल में आदर-सम्मान का भाव रखना, यह ऐसी आदतें हैं, जिन्हें हमें सामूहिक रूप से अपने अंदर विकसित करनी होंगी ताकि अगर कोई देश और समाज की बेहतरी के लिए कुछ करना चाहे तो उसके दिल में यह ख़याल न आए कि इन नालायक़ों के लिए ख़ामख्वाह कष्ट उठाने से क्या फ़ायदा ?
Friday, April 8, 2011
कैसे होता है सकारात्मक लेखन के लिए ब्लॉगर्स का हौसला पस्त ? An Alarming Call
मैं इंसानों के बीच लगभग 40 साल गुज़ार चुका हूं और डेढ़ साल ब्लागर्स के साथ भी कबड्डी से लेकर खो खो और शतरंज तक कई तरह के गेम खेल चुका हूं। इस लंबे अर्से के तजर्बे के बाद मैं कह सकता हूं कि आदमी शांति चाहता है लेकिन उसे मज़ा हंगामों में आता है। ब्लॉग जगत में फैले भ्रष्टाचार और पक्षपात को जड़ से उखाड़ फेंकने की मुहिम में मुझे जिन लोगों की ग़लती को चिन्हित करना पड़ा उनमें से एक मशहूर वकील साहब भी हैं। इसी क्रम में दो पोस्ट में महापत्रकार अजय कुमार झा जी का नाम मजबूरन लेना पड़ा। उन्होंने हमें सलाह दी कि
‘वक्त को समझिए डॉण् साहब ए उर्जा को अगर सही दिशा मिले तो ही वो सृजन करती है।‘
उनकी बात बिल्कुल सही थी, सो हमने फ़ौरन उस पर अमल किया और एक सकारात्मक संदेश देने वाली पोस्ट तैयार करके हिंदी ब्लॉग जगत के सुपुर्द कर दी।
अब सुनिए कि हमारी तीनों पोस्ट के साथ हुआ क्या ?
पहली दोनों पोस्ट्स में से तो एक को 27 पाठकों ने देखा और उस पर 8 कमेंट हुए। दूसरी पोस्ट को 35 लोगों ने देखा और उस पर 7 कमेंट हुए।
तीसरी सकारात्मक और सृजनात्मक पोस्ट को कुल 7 पाठकों ने पढ़ा और उस पर कमेंट शून्य है। अजय कुमार झा जी भी उस पर कमेंट देने नहीं आए, जिन्होंने मुझे ऐसा करने की सलाह दी थी। ईमानदारी का दंभ भरने वाले कुछ गुटबंद ब्लॉगर्स, जो कि आए दिन ऐसी ही सलाहें देते घूमते हैं, उनमें से भी कोई इस पोस्ट पर ‘नाइस पोस्ट‘ लिखने नहीं आया।
यह कैसी दुनिया है कि किसी की टांग खींचो तो तुरंत 50 आदमी आ जाएंगे और कमेंट भी देंगे और सलाह भी देंगे कि आप ऐसा करें और आप वैसा करें और जब आप उनकी सलाह के मुताबिक़ सकारात्मक लेखन करेंगे तो फिर न आपको उनमें से कोई पढ़ने आएगा और न ही आपको कमेंट देने के लिए।
आज यह विषय एक गंभीर चिंतन और आत्ममंथन मांगता है, जिसे हिंदी और मानवता के हित में ईमानदारी से और जल्दी से जल्दी किया जाना ज़रूरी है।
1- दो ब्लॉग पर एक ही पोस्ट , अजय जी के साहस को हमारा सलाम मय 11 तोप के गोलों के साथ इसलिए कि शायद सोने वाले जाग जाएं भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ Corruption
2- अजय कुमार झा जी ने सचमुच ही चार चांद लगा दिए हमारी वाणी को - Anwer Jamal
3- बोलने से पहले खूब सोच लेने से आदमी बहुत सी बुराईयों से बच जाता है The Word
‘वक्त को समझिए डॉण् साहब ए उर्जा को अगर सही दिशा मिले तो ही वो सृजन करती है।‘
उनकी बात बिल्कुल सही थी, सो हमने फ़ौरन उस पर अमल किया और एक सकारात्मक संदेश देने वाली पोस्ट तैयार करके हिंदी ब्लॉग जगत के सुपुर्द कर दी।
अब सुनिए कि हमारी तीनों पोस्ट के साथ हुआ क्या ?
पहली दोनों पोस्ट्स में से तो एक को 27 पाठकों ने देखा और उस पर 8 कमेंट हुए। दूसरी पोस्ट को 35 लोगों ने देखा और उस पर 7 कमेंट हुए।
तीसरी सकारात्मक और सृजनात्मक पोस्ट को कुल 7 पाठकों ने पढ़ा और उस पर कमेंट शून्य है। अजय कुमार झा जी भी उस पर कमेंट देने नहीं आए, जिन्होंने मुझे ऐसा करने की सलाह दी थी। ईमानदारी का दंभ भरने वाले कुछ गुटबंद ब्लॉगर्स, जो कि आए दिन ऐसी ही सलाहें देते घूमते हैं, उनमें से भी कोई इस पोस्ट पर ‘नाइस पोस्ट‘ लिखने नहीं आया।
यह कैसी दुनिया है कि किसी की टांग खींचो तो तुरंत 50 आदमी आ जाएंगे और कमेंट भी देंगे और सलाह भी देंगे कि आप ऐसा करें और आप वैसा करें और जब आप उनकी सलाह के मुताबिक़ सकारात्मक लेखन करेंगे तो फिर न आपको उनमें से कोई पढ़ने आएगा और न ही आपको कमेंट देने के लिए।
सारी हालत आपके सामने है क्योंकि मेरी तीनों पोस्ट आप हमारी वाणी के बोर्ड पर देख सकते हैं। यह बात सकारात्मक लेखन के लिए ब्लॉगर्स का हौसला पस्त करने के लिए काफ़ी है।
क्या यह सही हो रहा है ?आज यह विषय एक गंभीर चिंतन और आत्ममंथन मांगता है, जिसे हिंदी और मानवता के हित में ईमानदारी से और जल्दी से जल्दी किया जाना ज़रूरी है।
2- अजय कुमार झा जी ने सचमुच ही चार चांद लगा दिए हमारी वाणी को - Anwer Jamal
3- बोलने से पहले खूब सोच लेने से आदमी बहुत सी बुराईयों से बच जाता है The Word
Thursday, April 7, 2011
अजय कुमार झा जी ने सचमुच ही चार चांद लगा दिए हमारी वाणी को - Anwer Jamal
हमारी वाणी का दावा है कि वह नियम भंग करने वाले का धर्म, लिंग और उसका प्रभाव नहीं देखती। अगर कोई भी ब्लॉगर उसका नियम भंग करता है तो वह तुरंत कार्रवाई करती है। अगर ऐसा है तो शायद इस बार अपने महापत्रकार अजय कुमार झा जी पर हमारी वाणी कोई कार्रवाई कर बैठे।
आज हमने देखा कि हमारी वाणी के बोर्ड पर एक ही आदमी के तीन फ़ोटो नज़र आ रहे हैं। हमने सोचा कि अब तो यहां सलीम ख़ान भी नहीं हैं और हमने भी अपने पर-पुर्ज़े समेट लिए हैं तब आखि़र कौन है यह तो द्विवेदी जी की हमारी वाणी का सौंदर्य नष्ट करने पर तुला हुआ है। ग़ौर से देखा तो पता चला कि यह तो अपने अजय कुमार झा जी हैं। उन्हें देखकर दिल को तसल्ली हुई कि ये तो ब्राह्मण हैं, इनसे तो हमारी वाणी का सौंदर्य नष्ट होने का सवाल ही नहीं है। अगर ये एक पोस्ट और कर देते तो उल्टे चार चांद और लग जाते। हम अभी यह सोच ही रहे थे कि उनकी एक पोस्ट और नाज़िल हो गई और सचमुच ही चार चांद लगा दिए उन्होंने। हमने जाकर पोस्ट पढ़ी तो दो पोस्ट तो बिल्कुल एक ही हैं। उनके शीर्षक में भी ज़्यादा अंतर नहीं किया गया है।
आदमी क़ाबिल हैं। अन्ना जी का मुददा है। सब कुछ सही लेकिन हमारी वाणी का दावा है कि वह नियम भंग करने वाले पर कार्रवाई करती है और वह धर्म, लिंग और ब्लॉगर के रूतबे को नहीं देखती।
देखते हैं कि अब अजय जी के दो ब्लॉग का निलंबन होता है या फिर एक का या फिर उन्हें मात्र चेतावनी ही देकर छोड़ दिया जाएगा ?
2- http://aajkamudda.blogspot.com/2011/04/1.html
3- http://khabarokikhabar.blogspot.com/2011/04/3.html
4- http://ajaykumarjha1973.blogspot.com/2011/04/blog-post_07.html
.जैसे ही हमारी पोस्ट पब्लिश वैसी ही अजय जी ने पलती मरकर पोस्ट ही बदल डाली .
http://jholtanma-biharibabukahin.blogspot.com/2011/04/2.हटमल
इस लिंक पर जो पोस्ट नज़र आ रही है ठीक वही पोस्ट नज़र आ रही थी निम्न लिंक पर
http://aajkamudda.blogspot.com/2011/04/1.html
लेकिन अब इस पर नज़र आ रही है
'जन लोकपाल बिल क्या है ?'
आज हमने देखा कि हमारी वाणी के बोर्ड पर एक ही आदमी के तीन फ़ोटो नज़र आ रहे हैं। हमने सोचा कि अब तो यहां सलीम ख़ान भी नहीं हैं और हमने भी अपने पर-पुर्ज़े समेट लिए हैं तब आखि़र कौन है यह तो द्विवेदी जी की हमारी वाणी का सौंदर्य नष्ट करने पर तुला हुआ है। ग़ौर से देखा तो पता चला कि यह तो अपने अजय कुमार झा जी हैं। उन्हें देखकर दिल को तसल्ली हुई कि ये तो ब्राह्मण हैं, इनसे तो हमारी वाणी का सौंदर्य नष्ट होने का सवाल ही नहीं है। अगर ये एक पोस्ट और कर देते तो उल्टे चार चांद और लग जाते। हम अभी यह सोच ही रहे थे कि उनकी एक पोस्ट और नाज़िल हो गई और सचमुच ही चार चांद लगा दिए उन्होंने। हमने जाकर पोस्ट पढ़ी तो दो पोस्ट तो बिल्कुल एक ही हैं। उनके शीर्षक में भी ज़्यादा अंतर नहीं किया गया है।
आदमी क़ाबिल हैं। अन्ना जी का मुददा है। सब कुछ सही लेकिन हमारी वाणी का दावा है कि वह नियम भंग करने वाले पर कार्रवाई करती है और वह धर्म, लिंग और ब्लॉगर के रूतबे को नहीं देखती।
देखते हैं कि अब अजय जी के दो ब्लॉग का निलंबन होता है या फिर एक का या फिर उन्हें मात्र चेतावनी ही देकर छोड़ दिया जाएगा ?
अजय जी की चारों पोस्ट्स के लिंक निम्न हैं। आप भी जाएं और अन्ना जी का समर्थन करें।
1- http://jholtanma-biharibabukahin.blogspot.com/2011/04/2.html2- http://aajkamudda.blogspot.com/2011/04/1.html
3- http://khabarokikhabar.blogspot.com/2011/04/3.html
4- http://ajaykumarjha1973.blogspot.com/2011/04/blog-post_07.html
http://jholtanma-biharibabukahin.blogspot.com/2011/04/2.हटमल
इस लिंक पर जो पोस्ट नज़र आ रही है ठीक वही पोस्ट नज़र आ रही थी निम्न लिंक पर
http://aajkamudda.blogspot.com/2011/04/1.html
लेकिन अब इस पर नज़र आ रही है
'जन लोकपाल बिल क्या है ?'
हम तोप के गोले छोड़ते और सलामी देते ही रह गए उनके साहस को और वह मैदान ही छोड़ भागे .
खैर यह तो नेट है मिटने के बावजूद भी पुराना रिकार्ड देखना मुमकिन है .
दो ब्लॉग पर एक ही पोस्ट , अजय जी के साहस को हमारा सलाम मय 11 तोप के गोलों के साथ इसलिए कि शायद सोने वाले जाग जाएं भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ Corruption
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