Thursday, September 15, 2011

क्या खाने की प्लेट चिकेन के बिना अधूरी होती है ?

हमने एक रिपोर्ट पढ़ी तो यह सवाल हमारे सामने आ खड़ा हुआ .
आप भी देखें वह रिपोर्ट - 

खाने की प्लेट चिकेन के बिना अधूरी होती है

खाने की प्लेट चिकेन के बिना अधूरी होती है। यह बात सुनकर कोई शाकाहारी व्यक्ति भले ही मुंह बिचकाए, पर चिकेन के शौकीन  इसका पुरजोर समर्थन करेंगे।बदलते समय में जब खान-पान की आदतें बदल रही हैं और बाजार में तमाम तरह के व्यंजन उपलब्ध हैं, ऐसे समय में चिकेन से बने व्यंजन लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं। 
शेफ सुहैल हसन कहते हैं आज चिकेन से बने कई तरह के व्यंजन उपलब्ध हैं। चिकेन पारंपरिक इंडियन करी से लेकर चाइनीज, इटालियन हर तरह के खाने में मिल जाएगा।भारतीय खाने में चिकेन बिरियानी, चिकेन करी, तंदूरी चिकेन जैसे व्यंजन मिल जाएंगे। अफगानी खाने में शोरमा, अफगानी तंदूर और कबाब जैसे लजीज पकवान मिल जाएंगे। इटालियन खाने में चिकेन पिज्जा और चिकेन पास्ता मिल जाएगा, वहीं चाइनीज खाने में चिकेन चाउमीन, चिकेन सूप, चिकेन चॉप्सी, चिली चिकेन, चिकेन मोमो और चिकेन मंचूरियन जैसे स्वादिष्ट और लोकप्रिय व्यंजन मिल जाएंगे। उनके अनुसार, फास्ट फूड के शौकीनों को भी चिकेन बर्गर, चिकेन पैटीस और चिकेन रोल जैसे ढेरों व्यंजन मिल जाते हैं। एक चिकेन से आज हजारों तरह के व्यंजन बनने लगे हैं।चिकेन के एक दीवाने परमानंद मिश्र का कहना है कि खाने में रोज ही चिकेन व्यंजन हो तो क्या बात है। लेकिन जरूरत इस बात की है कि वह अलग-अलग वेराइटी में हो। उनकी पत्नी सौम्या मिश्र ने बताया कि घर हो या बाजार, ननवेजेटेरियन्स की पहली पसंद चिकेन व्यंजन ही होते हैं। साथ ही उन्होंने जोड़ा कि घर आने वाले मेहमान अगर शाकाहारी हों तो बड़ी कोफ्त होती है। समझ में नहीं आता है कि क्या बनाएं और क्या खिलाएं। चिकेन के अन्य आशिक प्रसेनजित राज्यवर्द्धन ने कहा कि रोज के खान-पान का हिस्सा बन चुके चिकेन संस्कृति को बढ़ावा देने में रेस्त्राओं का भी खासा योगदान रहा है। उनकी पत्नी दिव्या ने बताया कि घर से बाहर उनकी पहली पसंद चिकेन से बने व्यंजन ही होते हैं।रेसिपी विशेषज्ञ ममता सिंह कहती हैं चिकेन कलचर आज इस कदर फैला हुआ है कि कुछ लोगों को इसके बिना भोजन अधूरा लगता है। कभी केवल घरों में पकने वाला चिकेन आज रेस्त्रां, कैफे के अलावा गली-मुहल्ले में स्थित रोल, मोमो और चाउमीन के फास्ट फूड के ठेले पर भी मिलने लगा है। वैसे पुरानी दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके के मशहूर करीम रेस्त्रां, न्यू फ्रेंडस कॉलोनी के अल बेक रेस्त्रां में दिन भर खाने के लिए लोगों की भीड़ जमा रहती है।

मैक्डोनाल्ड्स का मशहूर चिकेन बर्गर यहां आने वाले खाने के शौकीनों के सबसे पसंदीदा खाने में से एक है। वहीं केएफसी [केंटचुकी फ्राइड चिकेन] रेस्त्रां तो चिकेन प्रेमियों के लिए खास ही है। यहां चिकेन विंग्स, चिकेन बर्गर और चिकेन लेग्स जैसे चिकेन के ढेरों आइटम मिलते हैं। कनॉट प्लेस स्थित केएफसी आउटलेट मे काम करने वाले अतुल सिंह ने कहा कि इसका स्वाद एक बार चढ़ जाए तो छूटना मुश्किल होता है।
चिकेन न केवल अपने देश में, बल्कि बाहर के देशों मे भी काफी लोकप्रिय है। अमेरिका में चिकेन इस कदर लोकप्रिय है कि वहां सितंबर महीना नेशनल चिकेन मंथ के रूप में मनाया जाता है। 15 सितंबर को वहां नेशनल चिकेन लवर्स डे के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन अमेरिका के कई रेस्त्राओं में मुफ्त चिकेन परोसा जाता है। इन्हीं में से एक पोलो ट्रॉपिकल रेस्त्रां चेन में आज के दिन हर साल दोपहर दो बजे से शाम के सात बजे तक पीले कपड़ों में आने वाले लोगों को मुफ्त में चिकेन परोसा जाता है। यानि जी भर के चिकेन खाइए वो भी बिल्कुल मुफ्त और मनाइए चिकेन लवर्स डे।
Source : http://aryabhojan.blogspot.com/2011/09/blog-post_15.html

Monday, September 12, 2011

क्या पश्चिमी नग्नता में ही नारी उत्थान छिपा है ? - प्रवीण शुक्ल



बात शुरू करते है नारी शास्क्तिकरण और नारी उत्थान की (जिसकी हवा बाँध कर कुछ चंद प्रगतिवादी अपनी पद प्रतिस्ठा और अर्थ की रोटियां सेक रहे है और समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को दिग्भर्मित किये है ),,,, आखिर नारी वादी आन्दोलन है क्या? मै तो आज तक नहीं समझ पाया .,,,, क्या नारी वादी आन्दोलन वास्तव में स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए की जा रही कोई क्रान्ति है ?,, या फिर पश्चिम से लिया गया एक खोखला दर्शन ,, जिससे स्त्री उत्थान तो संभव नहीं हां अवनति के द्वार अवस्य खुलते है ,,, अगर पश्चिम के इस दर्शन से कुछ हो सकता तो पश्चिमी समाज में स्त्रियो की जो दशा आज है शायद वो नहीं होती ,,,,,
हत्या ----दिसम्बर २००५ की रिपोर्ट के आधार अनुसार अकेले अमेरिका में ११८१ एकल औरतो की हत्या हुई जिसका औसत लगभग तीन औरते प्रति दिन का पड़ता है यहाँ गौर करने वाली बात ये है की ये हत्याए पति या रिश्ते दार के द्बारा नहीं की गयी बल्कि ये हत्याए महिलाओं के अन्तरंग साथियो (भारतीय प्रगतिवादी महिलाओं के अनुसार अन्तरंग सम्बन्ध बनाना महिलायों की आत्म निर्भरता और स्स्वतंत्रता से जुड़ा सवाल है और इसके लिए उन्हें स्वेच्छा होनी चाहिए) के द्बारा की गयी ,,,,
अब अंत रंग साथियो ने येसा क्यूँ किया कारण आप सोचे ,,,,नहीं नहीं नहीं नंगा पन (कथित प्रगतिवाद ) इसके लिए जिम्मेदार नहीं है ,,,
घरेलू हिंसा-----National Center for Injury Prevention and Control, के अनुसार अमेरिका में ४.८ मिलियन औरते प्रति वर्ष घेरलू हिंसा और अनेच्छिक सम्भोग का शिकार होती है ,,, और इनमे से कम से कम २० % हो अस्पताल जाना पड़ता है ...
कारण ---- पुरुष विरोधी मानसिकता और पारिवारिक व्यवस्थाओं में अविस्वाश और निज का अहम् (जो की कथित प्रगतिवाद की श्रेणी में आता है ) तो कतई नहीं होना चाहिए ,,,
सम्भोगिक हिंसा -----National Crime Victimization Survey, के अनुसार 232,960 औरते अकेले अमेरिका में २००६ के अन्दर बलात्कार या सम्भोगिक हिसा का शिकार हुई , अगर दैनिक स्तर देखा जाए तो ६०० औरते प्रति दिन आता है,,,इसमें छेड़छाड़ और गाली देने जैसे कृत्य को सम्मिलित नहीं किया गया है ,,, वे आकडे इसमें सम्मिलित नहीं है जो प्रताडित औरतो की निजी सोच ( क्यूँ की कुछ औरते येसा सोचती है की मामला इतना गंभीर नहीं है या अपराधी का कुछ नहीं हो सकता)और पुलिस नकारापन और सबूतों अनुपलब्धता के के कारण दर्ज नहीं हो सके ,,,
कारण --- इन निकम्मे प्रगतिवादियों और नारी वादियों द्बारा खड़े किये गए पुरुष विरोधी बबंडर रूपी भूत की परिणिति से उत्पन्न स्त्री पुरुष बिरोध और वैमन्यस्यता ( स्त्रियों को पुरुषों के खिलाफ खूब भरा जाना और और पुरुषों का स्त्र्यो की सत्ता के प्रति एक भय का अनुभव )तो बिलकुल नहीं ये आकडे बहुत है मै कम दे रहा हूँ और उद्देश्य बस इतना ही है की पुरुष विरोध के कथित पूर्वाग्रह को छोडिये ( जिसे मै पश्चिम की दें मानता हूँ )
इसमें किसी तरह का कोई नारी विरोध नहीं है और ना ही मै ये चाह्ता हूँ की उनकी स्तिथि में सुधार ना हो ,, बल्कि मै तो आम उन स्त्रियों को समझाना चाहता हूँ (जो इन कथित प्रगतिवादी महिलाओं और पुरुषों के द्बारा उनके निजी लाभ के कारण उकसाई जा रही है) की इनके प्रगतिवाद में कोई दम नहीं अगर वास्तव में आप को समाज में अपनी स्तिथि को उच्चता पर स्थापित करना है तो आप को उस भारतीय परम्परा की ओर बापस आना होगा ( जो कहता है स्त्रिया पुरुषों से अधिक उच्च है ) है ,,,
अब कथित प्रगतिवादियों के लिए छोटा सन्देश आप को अपनी प्रस्थ भूमि पर फिर विचार करने की आवश्यकता है और देखना है की जिस प्रगतिवाद की दुहाई आप दे रही है और जिन्हें आप ने मानक के रूप में स्थापित कर रक्खा है ,, क्या प्रगति वाद से उनकी वास्तव में कोई भी प्रगति हुई इतने लम्बे चले पश्चमी प्रगतिवादी आन्दोलन से क्या हासिल हुआ केवल विच्च का नाम जिस पर पश्चिमी औरते गर्व करती है ,,
’m tough, I’m ambitious, and I know exactly what I want. If that makes me a bitch, okay. - Madonna Ciccone

Source : http://www.thenetpress.com/2009/10/blog-post_09.html

Sunday, August 14, 2011

क्या हम इन हालात में मनाएंगे जश्न ए आज़ादी ?


पुण्य प्रसून बाजपेयी


हो सकता है यह संयोग हो, लेकिन 5 अगस्त को जब कॉमनवेल्थ गेम्स की पोटली कैग ने खोली और पीएमओ का नाम लिया तो एक पत्रकार ने सवाल पूछा, आप मनमोहन सिंह का नाम क्यों नहीं लेते हो? तो उक्त  अधिकारी ने कहा? नाम आप लीजिये हम तो संस्था बताते हैं। कुछ इसी तरह का सवाल 19 बरस पहले 1992 में सिक्योरिटी स्कैम यानी हर्षद मेहता घोटाले के वक्त जब पीएमओ का नाम आया तो एक पत्रकार ने पूछा आप पीवी नरसिंह राव क्यों नहीं कहते हैं, तो जवाब मिला नाम आप बताईये। लेकिन, उस वक्त जो नाम अखबारों की सुर्खियों में आया वह तब के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह और वाणिज्य राज्य मंत्री पी. चिदबरंम का था। और संयोग देखिये 19 बरस बाद कॉमनवेल्थ से लेकर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले तक में जो नाम सुर्खियो में है उसमें मनमोहन सिंह और चिदबरंम का ही नाम है। और स्वास्‍थ्‍य मंत्री बी.शंकरानंद का भी नाम था. 19 बरस पहले चिदबरंम को इस्‍तीफा देना पड़ा था। लेकिन, हर्षद मेहता के काले दामन का असल दाग तब भी वित्त मंत्रालय पर ही लगा था। सिर्फ मनमोहन सिंह नही बल्कि उनके जूनियर रामेश्वर ठाकुर भी फंसे थे।

लेकिन, इन 19 बरस में क्या-क्या कुछ कैसे-कैसे बदल गया, अगर उसके आईने में तब के वित्त मंत्री और अब के प्रधानमंत्री को फिट कर दिया जाये सिक्के के दोनों तरफ एक ही तस्वीर नजर आयेगी और संयोग शब्द कमजोर भी लगने लगता है। क्योंकि अभी जिस तरह टेलीकॉम, पेट्रोलियम, फूड, फर्टिलाईजर, कोयला और वित्त मंत्रालय से लेकर पीएमओ तक अलग-अलग घोटालों में फंसे दिखायी पड़ रहे हैं। अगर इसके उलट पीवी नरसिह राव के दौर यानी 1991-96 के वक्त मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधार के आईने में घोटाले और उसकी कहानियों को देखें तो अभी के वक्त पर सवाल खड़ा हो सकता है। अभी के कैश-फोर-वोट के उलट जेएमएम घूसकांड का सच जब कई हिस्‍सों में सामने आया तो पता यही चला कि सांसदों को खरीदा गया।

और उस वक्त रुपया जुगाड़ा पेट्रोलियम मंत्री सतीश शर्मा ने। हुआ यह कि सतीश शर्मा ने तब पेट्रोलियम सचिव खोसला को पेट्रोलियम डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट के नाम पर कुछ खास कंपनियों को तेल के कुएं देने को कहा। खोसला ने निर्णय लिया तो ओएनजीसी के वरिष्ट अधिकारियो ने इसका विरोध किया। मंत्री सतीश शर्मा इस लड़ाई में कूदे और तेल के कुएं एस्सार, वीडियोकॉन और रिलांयस को बांटे गये। एक महीने बाद ही पेट्रोलियम सचिव खोसला ने पद से इस्‍तीफा दे रिलायंस का दामन थाम लिया। खोसला को एस्सार ने 7 करोड़, रिलांयस ने 4 करोड़ और वीडियोकॉन ने 2 करोड़ दिये। जिसमें से साढ़े तीन करोड़ तो जेएमएम कांड में बांटे गये बाकी डकार लिये गये।

जाहिर है इस आईने में कुछ दिन पहले तक रहे पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा के रिलायंस प्रेम में गैस बेसिन बांटना भी देखा जा सकता है और पेट्रोल की कीमत किस तरह निजी कंपनियों के हवाले कर दी गयी यह भी समझा जा सकता है। 2जी स्पेक्ट्रम लाईसेंस को लेकर चाहे अब यह सवाल खड़ा होता हो कि सूचना तकनीक तो अभी ही दिखायी दे रही है तो फिर एनडीए के दौर की नीति पर चलने का मतलब क्या है। लेकिन सच यह भी है कि देश की आजादी के बाद 44 बरस में जितने टेलीफोन इस देश में थे उससे ज्यादा टेलीफोन 1991-95 के दौर में लगे। 1991 तक सिर्फ 50 लाख फोन थे। लेकिन 1995 में इसका संख्य एक करोड पांच लाख हो गई। और टेलीकॉम का असल घोटाला भी इसी वक्त हुआ। जब सुखराम के घर में बोरियो में साढ़े तीन करोड़ जब्त भी हुये और 5 बरस में 1000 करोड़ के काम में से सिर्फ 5 फीसदी काम ही पूरा हुआ। और डीओटी के अधिकारियों ने भी देश को चूना लगाया क्योंकि हर साल 4 हजार करोड़ के कल-पुर्जे इस दौर में पांच साल तक खरीद में दिखाये गये। लेकिन जैसे अभी 2जी लाईसेंस के खेल के पीछे कारपोरेट का मुनाफा पाने के लिये ए. राजा को मंत्री बनाने तक का खेल रहा।

उसी तर्ज पर उस दौर में भी डेढ़ लाख करोड़ में से 85 हजार करोड़ का काम बिना बिड के सुखराम ने अपने मातहत कंपनी हिमाचल फुटुस्टिक कम्युनिकेंसन लि. यानी एचपीसीएल को दे दी। जिसके संबंध इजरायल के कंपनी बेजेक्यू टेलीकॉम से जुड़े थे । उस वक्त रिलायंस यह सौदा चाहता था। लेकिन उसके हाथ खाली रहे, तो उसने अपने करीबी सासंदो को जरिये दस दिनो तक संसद ठप करवा दी। और कारपोरेट तंत्र ने सरकार को भी टेलीकॉम घोटाले को पकड़ने के लिये मजबूर किया। यह अलग बात है 2011 में इसी रिलांयस के बडे अधिकारी भी तिहाड़ जेल में स्पेक्ट्रम घोटाले की वजह से बंद हैं। महंगाई में कृषि मंत्री शरद पवार की चीनी माफिया को मदद पहुंचाने के आरोप बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस भी लगाती रही है।

लेकिन 19 बरस पहले चीनी का खेल कल्पनाथ राय ने किया था। 650 करोड़ के चीनी घोटाले के बाद कल्पनाथ राय को हवालात भी जाना पडा था और उसके बाद अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद के साथ संबंधों के मद्देनजर आतंकवादी कानून टाडा भी लगा था। डेढ़ बरस पहले मनमोहन सिंह के ही मंत्रीमंडल में फर्टीलाईजर मंत्री भी यूरिया घोटाले में फंसे। लेकिन यूरिया का असल घोटाला तो पीवी नरिसंह राव के दौर में हुआ। जब उनके बेटे प्रभाकर राव और रामलखन सिंह यादव के बेटे फर्टीलाईजर मंत्री प्रकाश चन्द्र यादव ने 133 करोड का यूरिया टर्की की कंपनी कर्सन से मंगाया। और नेशनल फर्टीलाईजर लिंमेटेड के दस्तावेजों में 133 करोड का यूरिया ले भी लिया. लेकिन वह यूरिया कभी आया ही नहीं। और मामला पीएम के बेटे से जुड़ा था तो तत्कालिक वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की खामोशी में मामले को ही रफा-दफा किया गया। तीन महीने पहले दिल्ली के कनाट-प्लेस की एक कंपनी से 70 करोड़ रुपये कैश पकड़ाये तो सीबीआई और सीबीडीटी के अधिकारियों ने कहा कि यह हवाला और मनीलॉडरिंग का रुपया है।

और देश की छोटी बडी सौ से ज्यादा कंपनियों के तार इससे जुड़े हुये हैं। इसमें राजनेताओं और नौकरशाहों के भी नाम आने की बात कही गयी। लेकिन बीते तीन महीने में हर कोई इस हवाला रैकेट को भूल गया। लेकिन 1995 का हवाला रैकेट आज भी देश को याद है। उस वक्त मध्यप्रदेश के व्यवसायी एस. के. जैन के हवाला खेल में देश के 31 टॉप राजनेता और 16 बडे नौकरशाहों का नाम आया था। राव कैबिनेट के 15 मंत्रियों के नाम थे। और सीबीआई को मिले जैन के घर से छापे में 58 लाख रुपये नकद। दो लाख की विदेशी करेंसी। 15 लाख के इंदिरा विकास पत्र। दो डायरियां और नोटबुक। याद कीजिये उस वक्त जैन डायरी में किस-किस का नाम लिखा था जिसे लेकर देश भर में हंगामा मचा। राजीव गांधी भी थे और आडवाणी भी। प्रणव मुखर्जी भी थे और यशंवत सिन्हा भी। आर. के. धवन भी थे और अरुण नेहरु भी। कमलनाथ भी थे और विजय कुमार मल्‍होत्रा भी। कैबिनेट सचिव नरेश चन्द्र भी थे और एनटीपीसी चैयरमैन पीएस बामी भी। जैन से पूछताछ में घेरे में पीएमओ भी आया और वित्त मंत्री पर भी अंगुली उठी।

उस दौर में भी यह माना गया कि पीवी नरसिंह राव ने संसद की जसंवत सिंह की अध्यक्षता वाली प्रावकलन कमेटी की सिपारिशो को ठंडे बस्ते में रखकर सीबीआई को संवैधानिक दर्जा नहीं दिया जा रहा था। क्योंकि 4 मार्च से 12 मार्च 1995 में जैन ने जो सीबीआई के सामने कबूला उससे नरसिंह राव ही हवाला शिंकजे में फंस रहे थे। जैन का वह बयान आज भी अपराध दंड संहिता की धारा 161 के तहत दर्ज है। जाहिर है इस आईने में स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच में पूर्व कैबिनेट मंत्री ए. राजा के बयान झलक सकते हैं। लेकिन देखिये उस वक्त हवाला की कुल रकम 69 करोड थी। और बीते तीन बरस में हवाला के तहत देश में 7 अरब से ज्यादा रुपया जब्त किया जा चुका है। लेकिन देश में कोई हरकत नहीं है।

घोटाले की फेरहिस्त की अब तो खनन की जमीन को निजी कंपनियो को बांटना और बेल्लारी सरीखी लूट सियासी जरुरत और विकास का मंत्र बन चुकी है। लेकिन यह खेल 1995 में भी खेला गया। तब कोयला मंत्री संतोष मोहन देव ने 240 करोड की बैलेडिला कोयला खादान महज 16 करोड में निजी कंपनी निप्पन डेन्ड्रो को दे दी थी। चूंकि निप्पन से पीएम की करीबी थी तो वित्त मंत्री ने भी उस वक्त कोई अंगुली नहीं उठायी। कुछ इसी का खेल शहरी विकास मंत्री शीला कौल ने दो हजार सरकारी घरों को बांट कर किया। दरअसल राव के दौर में जिस आर्थिक सुधार की लकीर मनमोहन सिंह बतौर वित्त मंत्री देश में खींच रहे थे और अब बतौर प्रधानमंत्री उसी लकीर पर देश को दौड़ा रहे हैं असल में उसका असर भी उसी अनुरुप दिखायी देने लगा है। इसलिये 1996 में आर्थिक घोटालो के लिये सीबीआई के फंदे में 200 कंपनियों के नाम थे। और आज 1100 कंपनियो के नाम हैं।

उस दौर में आईटीसी ने 350 करोड़ का फेरा उल्लघन किया था। गोल्डन टबैको के संजय डालमिया 400 करोड़ के खेल में फंसे थे। शा वैलेस के एमआर छाबरिया 100 करोड़ के इक्मानिक अफेन्स में तो गणपति एक्सपोर्ट के ओपी अग्रवाल 90 करोड़ की मनी लॉन्‍डरिंग में फंसे थे। लेकिन आज के हालात ऐसे है कि शेयर बाजार की औसतन हर तीन में से एक कंपनी की आर्थिक जुगाली पर सीबीआई नजर रखे हुये है। 1150 कंपनियों की बकायदा हवाला और मनीलैंडरिंग की जांच कर रही है। एफडीआई का रास्ता ही मारीशस और मलेशिया वाला है जिसे सरकार ही हवाला रुट मानती है। इन्ही रास्तों से विदेशी निवेश को दिखाने वाली भारतीय कंपनियों ने ही खुद की व्यूह रचना तैयार की है जिससे 50 लाख करोड़ से ज्यादा की पूंजी का ओर-छोर है क्या यह पकड़ पाना मुश्किल ना भी हो लेकिन इसे पकड़ा गया तो मनमोहन इक्नामिक्स का वह ढांचा चरमराने लगेगा जिसपर खड़े होकर भारतीय कंपनियों ने अब दुनिया में इनवेस्ट करना शुरू किया है।

इस दौड़ में देश के टॉप कारपोरेट भी हैं जिन्होंने इस दौर में 47 बिलियन डॉलर बिदेश में निवेश किया जबकि भारत में सिर्फ 22 मिलियन डॉलर। इसलिये बडा सवाल यही से खड़ा होता है कि जब आर्थिक भ्रष्टाचार की जमीन पर ही आर्थिक सुधार चल पडा है तो फिर इसे सरकारी व्यवस्था के ढांचे में कैसे रोका जा सकता है। और इसे रोकने के लिये जो अपराधिक कानून लागू करने से लेकर सजा देने का ढांचा तैयार होगा अगर उसके घेरे में उसमें सरकार, सांसद और प्रधानमंत्री नहीं आये तो फिर संसद के बिकने में कितने दिन लगेगें । और तब यह सवाल जागेगा कि क्या वाकई हम आजाद है और आजादी का जश्न मनाये।

पुण्य प्रसून बाजपेयी
पुण्य प्रसून बाजपेयी ज़ी न्यूज़ में प्राइम टाइम एंकर और सम्पादक हैं। पुण्य प्रसून बाजपेयी के पास प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 20 साल से ज़्यादा का अनुभव है। प्रसून देश के इकलौते ऐसे पत्रकार हैं, जिन्हें टीवी पत्रकारिता में बेहतरीन कार्य के लिए वर्ष 2005 काइंडियन एक्सप्रेस गोयनका अवार्ड फ़ॉर एक्सिलेंस और प्रिंट मीडिया में बेहतरीन रिपोर्ट के लिए 2007 का रामनाथ गोयनका अवॉर्ड मिला। उनके ब्लॉग http://prasunbajpai.itzmyblog.com/ से साभार

Monday, July 11, 2011

धर्म को उसके लक्षणों से पहचान कर अपनाइये कल्याण के लिए

अक्सर लोग उपदेश भी बेमन से सुनते हैं और क़ानून की पाबंदी भी फ़िज़ूल समझते हैं। इस तरह अनुशासन और संयम से हीन लोगों की भीड़ वुजूद में आ जाती है जो ख़ुद तो अपने हक़ से ज़्यादा पाना चाहते हैं और दूसरों को उनका जायज़ हक़ तक नहीं देना चाहते। इस तरह समस्याएं जन्म लेती हैं और इनका कारण पिछले जन्म के पाप नहीं बल्कि इसी जन्म की अनुशासनहीनता होती है।
इंसान के अंदर डर और लालच, ये दो प्रवृत्तियां होती हैं। ईश्वर में विश्वास और धर्म के पालन से इनमें संतुलन बना रहता है लेकिन ठगों ने ईश्वर के आदेश छिपा कर अपने उपदेश समाज में फैला दिए और इसका नतीजा यह हुआ कि धर्म का लोप हो गया और ईश्वर और धार्मिक परंपराओं के नाम पर लूट और अत्याचार का बाज़ार गर्म हो गया, किसी एक देश में नहीं बल्कि सारी दुनिया में। बुद्धिजीवियों ने यह देखा तो उनका विश्वास धर्म से उठ गया और उन्होंने ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व को ही नकार दिया। अतः पढ़े लिखे लोगों में यह धारणा बन गई कि ईश्वर है ही नहीं तो ईनाम या सज़ा कौन देगा ?
और जब आत्मा ही नहीं है तो फिर ईनाम या सज़ा का मज़ा भोगेगा कौन ?
इसके बाद तार्किक परिणति यही होनी थी कि दुनिया में ज़ुल्म का बाज़ार गर्म हो जाए और यही हुआ भी । पढ़े-लिखे और समझदार (?) अर्थात नास्तिक लोगों का मक़सद केवल प्रकृति पर विजय पाकर ऐश का सामान इकठ्ठा करना ही रह गया।
ईश्वर और धर्म का इन्कार करने वालों ने दुनिया को बर्बाद करके रख दिया और इन लोगों का विश्वास जिन ठगों ने हिलाया है वे मानवता के इससे भी ज़्यादा मुजरिम हैं।
मंदिर या मस्जिद में जाने से ही आदमी धार्मिक नहीं बन जाता। ये धार्मिक कर्मकांड तो रावण और यज़ीद दोनों ही करते थे। आदमी का धर्म उसके आचरण से प्रकट होता है। धर्म के लक्षण हरेक भाषा की किताब में लिखे हुए हैं और वे सत्य, न्याय , उपकार और क्षमा आदि हैं कि अगर इन्हें अपना लिया जाए तो आदमी की मेंटलिटी क्राइम फ़्री हो जाएगी। मानने वाले लोग पहले भी ईश्वर की कृपा पाने के लिए ही उसकी व्यवस्था का पालन करते थे और आज भी करते हैं। संविधान का पालन ख़ुद ब ख़ुद ही हो जाता है।
ये सिक्के आज भी चल रहे हैं। अपनी वासनाओं में डूबे हुए लोगों का अपनी मुसीबत में ईश्वर-अल्लाह को याद करना इसी का प्रमाण है।
इसी बात को आप नीचे दिए गए लिंक पर भी देख सकते हैं :
आदमी का धर्म उसके आचरण से प्रकट होता है
1- http://www.amankapaigham.com/2011/07/blog-post_11.html?showComment=1310397703955#c4491598195124013322

Tuesday, June 21, 2011

पिछले जन्म की ख़बरें देने वाले बच्चों की हक़ीक़त


अख़बारों में और टी. वी. चैनल्स पर आए दिन कुछ ऐसे बच्चे दिखाए जाते हैं जो बताते हैं कि वे पिछले जन्म में अमुक व्यक्ति थे और उनकी मौत ऐसे और ऐसे हुई थी और जब जाकर देखा जाता है तो कुछ बच्चे वाक़ई सच बोल रहे होते हैं। वे उन जगहों पर भी जाते हैं जहां उन्होंने कुछ गाड़ रखा होता है और उनके अलावा कोई और उन जगहों को नहीं जानता। वे खोदते हैं तो वहां सचमुच कुछ चीज़ें भी निकलती हैं। इस तरह के बच्चे भी जैसे जैसे बड़े होते चले जाते हैं। वे भूलते चले जाते हैं कि वे सब बातें जो वे पहले बताया करते थे जबकि वे अपने बचपन की बातें नहीं भूलते।
दरअस्ल उस बच्चे का यहां पनर्जन्म हुआ ही नहीं होता है और जो कुछ वह बता रहा था, उसे भी वह अपनी याददाश्त से नहीं बता रहा था। हक़ीक़त यह है कि हमारे अलावा भी हमारे चारों ओर अशरीरी चेतन आत्माएं मौजूद हैं। इन्हीं में कुछ आत्माएं किसी कमज़ोर मन को अपनी ट्रांस में लेकर बच्चे के मुंह से वही बोल रही होती हैं। जेनेरली इन्हें शैतान की श्रेणी में रख दिया जाता है क्योंकि ये परेशान करती हैं। इनके इलाज के लिए हम बच्चे को अज़ान सुनाते हैं। उसमें मालिक का पाक नाम है और उसकी बड़ाई का चर्चा है। एक बार ऐसा ही केस हमारे एक बुज़ुर्ग दोस्त मौलाना कलीम सिद्दीक़ी साहब के सामने लाया गया। उनके सामने भी वह बच्चा पिछले जन्म की बातें बताने लगा। इसी दरम्यान मौलाना चुपके से अज़ान के अल्फ़ाज़ दोहराए और चुपके से उस बच्चे पर फूंक मारी। यह अज़ान जब उस पर सवार शैतान आत्मा ने सुनी तो वह भाग खड़ी हुई। पिछले जन्म की बातें बताते बताते बच्चा अचानक ही ख़ामोश हो गया।
मौलाना ने बच्चे से पूछा कि हां, बताओ बेटा और क्या हुआ था आपके साथ पिछले जन्म में ?
तो वह चुप हो गया क्योंकि उसके मुख से जो बता रहा था वह तो भाग ही चुका था।
हिन्दू भाईयों के सामने इस तरह की घटनाएं आती हैं तो उन्हें लगता है कि आवागमन की उनकी मान्यता का प्रमाण हैं ये घटनाएं। वे इन्हें अजूबा बना लेते हैं। वे ऐसे बच्चों का रूहानी या मानसिक इलाज कराने के बजाय उन्हें सेलिब्रिटी बना लेते हैं। अख़बार वाले उनका इंटरव्यू छापते हैं और चैनल वाले भी अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए इन मासूम बच्चों का इस्तेमाल करते हैं।
हालांकि इन बच्चों के माता-पिता अज़ान सुनाकर इन्हें स्वस्थ कर सकते हैं और इस भ्रमजाल से अपने बच्चों के साथ ख़ुद को भी मुक्ति दिला सकते हैं।
अगर वे अज़ान न भी सुनाना चाहें वे अपनी भाषा के पवित्र मंत्र पढ़कर आज़मा सकते हैं। मालिक के पाक नाम तो हिंदी-संस्कृत में भी हैं और इन भाषाओं में उस मालिक की महानता का चर्चा भी है।
हरेक बच्चा इस दुनिया में फ़्रेश आता है। यह तर्क से तो साबित है ही, अनुभव से भी साबित हो चुका है।
अगर कोई इलाज न भी कराया जाए तब भी जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है और उसका मन मज़बूत होता जाता है। वह अज्ञात आत्मा की ट्रांस से ख़ुद ही मुक्त होता चला जाता है।
यह बात केवल कुछ बच्चों के लिए ही है। कुछ बच्चों के दावे तो अनुसंधान के बाद केवल माता पिता के सिखाने का परिणाम भी साबित हुए हैं। किसी बड़े आदमी के परिवार से अर्थलाभ की ख़ातिर माता-पिता ने अपने बच्चों को कुछ बातें रटवा दी थीं।
बहरहाल यह दुनिया है। सच्ची बात केवल मालिक जानता है और वही बता भी सकता है कि हक़ीक़त क्या है ?
जो बंदा उसे मानता है, उसकी वाणी को मानता है। वह इन सब छल फ़रेब का शिकार नहीं बनता। वह न किसी आवागमन को मानता है और न ही आवागमन से मुक्ति के प्रयास में जंगल में जाकर बेकार की साधनाएं करता है।
इंसान मुक्त ही पैदा हुआ है। उसे चाहिए कि वह समाज में रहे। अपने कर्तव्यों का पालन करे। अपने इरादे से कोई पाप न करे और अगर कोई हो जाए तो तुरंत उस कर्म को त्याग दे। उसका प्रभु पालनहार उससे केवल यही चाहता है।
इस संबंध में इसी चर्चाशाली मंच की एक पोस्ट और भी उपयोगी है

आवागमन महज़ एक मिथकीय कल्पना है Awagaman



और आप एक नज़र इस पोस्ट पर भी डाल सकते हैं
http://zealzen.blogspot.com/2011/06/blog-post_22.html?showComment=1308721446104#c8240670385752030936
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http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/8910218.cms

Tuesday, June 7, 2011

'साधु और संग्रह' - Shiv Kumar Goyal



शिवकुमार गोयल जी एक लेखक हैं। आज 'अंतर्यात्रा' कॉलम में मैंने उनके एक छोटे से लेख 'साधु और संग्रह' पढ़ा जो कि अमर उजाला दिनाँक 14 मार्च 2011 के अंक में पृष्ठ सं. 12 पर छपा है। उसका एक अंश यहाँ उद्धृत है :
'संसार से वैराग्य होने पर कुछ लोग गृहस्थी त्यागकर साधु -संयासी बन जाते हैं। वे कई बार आधुनिकता की चकाचौंध में फँसकर भगवत भजन और सांसारिक लोगों का मार्गदर्शन करने के बजाए चेले बनाने और भव्य आश्रमों के निर्माण में लग जाते हैं। यह ग़लत है। विरक्त संत उड़िया बाबा कहा करते थे ,'यदि सांसारिक ऐश्वर्य में जीने की लालसा है तो साधु बनने की क्या आवश्यकता थी ? असली साधु-संयासी के लिए तो धर्म ग्रंथों में किसी भी प्रकार के संग्रह वर्जित बताया गया है , तो फिर चेले-चेलियाँ बनाने और आश्रम तैयार करने की आकांक्षा पालना उचित नहीं।'
आज के समय में अब उसे ही बड़ा संत माना जाता है , जिसके आश्रम जहाँ-तहाँ फैले होते हैं। इन कथित संतों के शास्त्र विरुद्ध और मर्यादाहीन जीवन जीने के दुष्परिणाम भी अब सामने आ रहे हैं।' 
इस अहम चर्चा को आप ‘परिचर्चा‘ पर भी देख सकते हैं:

और भाई ख़ुशदीप जी की चर्चा भी एक यादगार चर्चा है। यह चर्चा अपने आप में एक आईना है।

Monday, April 25, 2011

क्या यह संभव है कि भगवान ही न रहे ? God is immortal .


साईं कहते हैं मालिक को और जब सत्य शब्द भी इसके साथ लग जाता है तो यह नाम ईश्वर के लिए विशेष हो जाता है क्योंकि हर चीज़ का सच्चा स्वामी वही एक है जो न तो पैदा होता है और न ही उसे मौत आती है। जन्म-मरण का चक्र उसे बांधता नहीं है।
आज सुबह अख़बार में ख़बर देखी कि सत्य साईं बाबा नहीं रहे।
‘नहीं रहे‘ से क्या मतलब ?
सत्य साईं बाबा खुद को भगवान बताते थे। क्या यह संभव है कि भगवान ही न रहे ?
आदमी की मौत बता देती है कि मरने वाला भगवान और ईश्वर नहीं था लेकिन  जिन लोगों पर अंधश्रृद्धा हावी होती है वे फिर भी नहीं मानते।
मैं इस विषय पर कुछ लिखना चाहता था लेकिन एक लेख पर मेरी नज़र पड़ी तो मैंने मुनासिब समझा कि इसे ज्यों का त्यों आपके सामने पेश कर दूं।

एक मंझोले जादूगर की मौत

भारत के एक मंझोले जादूगर सत्यनारायण राजू उर्फ सत्य साईं बाबा की मौत हो गई। सत्य साईं का प्रभाव 165 देशों में बताया जाता है और इनके ट्रस्ट ने कई क्षेत्रों में जनहित में काम किए हैं। इनके ट्रस्ट की दौलत 40 हजार करोड़ रुपए बताई जाती है।

सत्य साईं बाबा सचमुच में सोने की खान थे। वे कई बार अपने मुंह से सोने की गेंद, चेन और शिवलिंग निकाल चुके थे। इस तरह बाबा स्विस घड़ियों और भभूत की खान भी थे। हालांकि बाबा के ये कारनामे कोई भी औसत जादूगर कर सकता है। मैंने सुना-पढ़ा है कि भारत के महान जादूगर पीसी सरकार ने बाबा के चमत्कारों को साधारण करतब बता कर चुनौती दी थी कि वे साईं उनके सामने अपने चमत्कार दिखाएं और वे खुद वैसे ही जादू दिखाएंगे। हालांकि बाबा ने कभी यह चुनौती स्वीकार नहीं की। अब भला हाथ की सफाई दिखाने वाले जादूगर से एक चमत्कारी बाबा का क्या मुकाबला!


सत्य साईं की मौत पर मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और लाल कृष्ण आडवाणी को बहुत दुख हुआ। सचिन तेंडुलकर को भी। एक न्यूज चैनल दिखा रहा था कि सचिन इस मौत से सदमे में हैं। सचिन ने नाश्ता नहीं किया और होटेल के कमरे में खुद को बंद रखा है और किसी से भी मिलने से इंकार कर दिया। सचिन ने सत्य साईं के खराब स्वास्थ्य के मद्देनजर पहले ही घोषणा की थी कि वह अपना बर्थडे नहीं मनाएंगे। पहले खबर आई थी कि सचिन रविवार का मैच भी नहीं खेलेंगे। मेरे एक दोस्त ने टिप्पणी की कि पिता की मौत के बाद बेहतरीन पारी खेली थी और अब नहीं खेलेंगे! हालांकि बाद में सचिन ने मैच खेला।

सत्य साईं बाबा क्या वाकई नहीं रहे? नहीं, संदेह का कोई मतलब नहीं है लेकिन सत्य साईं ने खुद ही 96 साल की उम्र में शरीर त्यागने की बात कही थी तो बाबा 85 साल की उम्र में ही कैसे चले गए! क्या वह लोगों के कलियुगी व्यवहार से तंग आ गए थे। मतलब ऐसा व्यवहार कि मरने से पहले ही लोग पूछने लगे कि बाबा के मरने के बाद उनकी जायदाद का क्या होगा!

अब इससे भी घोर कलयुग क्या आएगा कि जो बाबा भभूत से पूरी दुनिया का कष्ट दूर करता हो, उसी के इलाज के लिए विदेश से डॉक्टर आएं! हो सकता है कि बाबा की इच्छा ऐसे लोगों के बीच रहने की न रह गई हो या कौन जाने अस्पताल के बिस्तर पर लेटे बाबा ने अपनी भविष्यवाणी में सुधार किया हो लेकिन किसी ने उस पर गौर न किया हो। या क्या जाने बाबा ने 11 साल के लिए समाधि ही ली हो और नादान डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया हो!

खैर सत्य साईं की एक बात मुझे सबसे ज्यादा पसंद आई। उन्होंने कहा था, ‘मैं भगवान हूं, तुम भी भगवान हो। फर्क सिर्फ इतना है कि यह मुझे पता है और 
तुमको नहीं पता है।’ अफसोस कि बाबा की इस साफगोई को लोग समझ नहीं सके।

 से साभार