http://www.twocircles.net/2011jan19/deoband_rector_maulana_ghulam_vastanvi_talks_tcn_gujarat.html |
आदमी की पहचान कभी आम हालत में नहीं होती बल्कि उसकी पहचाान तब होती है जबकि कोई कुरबानी देने का मौक़ा आता है। इस्लाम सरासर कुर्बानी है और जो कुर्बानी देने के लिए तैयार नहीं है, वह मुसलमान भी नहीं है। नगरपालिका की लिस्ट खुदा के दरबार में काम न देगी। मुस्लिम वह है जिसे खुदा मुस्लिम क़रार दे न कि वह जिसे सियासी पार्टियां या दुनिया के लोग मुस्लिम कहें।
जो मुस्लिम ही नहीं हैं हक़ीक़त के ऐतबार से, जो धड़ेबंद और गुटबाज़ हैं, जो अल्लाह की हदों को तोड़ने वाले हैं वे आज मुसलमानों के आक़ा बने हुए हैं। मुसलमानों की कमर पर एक अनचाहे बोझ की तरह लदे हुए हैं। मुसलमानों के मौक़ापरस्त सियासी नेताओं से ज़्यादा ख़तरनाक हैं ये लोग, जो एक महान दीनी संस्था में बेवजह ऊधम मचा रहे हैं।
मौलाना गुलाम मुहम्मद वस्तानवी साहब द्वारा मोदी की तारीफ़ करना मात्र एक बहाना है। और फिर अगर मोदी द्वारा गुजरात के विकास के लिए कुछ अच्छा किया जा रहा है तो इस्लाम कब कहता है कि आप अपने दुश्मन के अच्छे कामों की भी तारीफ़ न करें ?
ऐसा करना तो तास्सुब और सांप्रदायिकता है। मोदी ने अगर पूर्व में कुछ ग़लत किया है तो उसे ग़लत कहा गया है और अगर वे आज कुछ अच्छा कर रहे हैं तो उसे अच्छा ही कहा जाएगा। ग़लत का विरोध किया जाएगा और अच्छे काम में साथ दिया जाएगा। इस्लाम की छवि और क़ौम के भविष्य से खेलने वाले ये शरारती तत्व एक-दो हैं लेकिन बहुत ताक़तवर हैं। इनकी दाढ़ी, टोपी और तक़रीरें लोगों को भ्रम में डाल देती हैं कि ये बहुत दीनदार हैं लेकिन अस्ल में दीनदार वह है जो शांति पसंद है क्योंकि इस्लाम का अर्थ ही शांति है। वास्तव में दीनदार वह है जो कुर्बानी देकर सामूहिक फ़ैसले का सम्मान करे जैसे कि हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत अबूबक्र को ख़लीफ़ा तस्लीम करके किया था। सहाबा का आला नमूना सामने होने के बावजूद भी ऊधम वही काट सकता है जो कि उनके तरीक़े पर न हो और जो उनके तरीक़े पर न हो वह राह से हट चुका है, उसे कभी मंज़िल मिलने वाली नहीं है।
देवबंद की इसी संस्था में पहले भी सन् 1980 ई. में मोहतमिम पद के लिए रस्साकशी हो चुकी है जिसने उम्मत को सिर्फ़ और सिर्फ़ नुक्सान ही पहुंचाया है। जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो फिर उस खेत की हिफ़ाज़त कौन करेगा ?
ये लोग कहते हैं कि मुसलमानों को मोदी से ख़तरा है। जबकि ख़तरा ये खुद हैं। मीडिया लोकतंत्र का चैथा खंभा कहलाता है लेकिन आप देवबंद के उर्दू पत्रकारों को देख लीजिए। दो बड़े उर्दू समाचार पत्रों में मौलाना वस्तानवी के नज़रिये को कोई जगह ही नहीं दी जा रही है। पत्रकार भी ज़मीरफ़रोशी पर आमादा हैं। फिर किस बुनियाद पर ये उर्दू मीडिया देशी-विदेशी मीडिया पर आरोप लगाती है कि वे अपने मफ़ाद के लिए वाक़ये की सही तस्वीर पेश नहीं करती।
एक अफ़सोस के सिवा हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन बहरहाल सच ज़रूर कह सकते हैं और दुआ कर सकते हैं। अल्लाह ने हम पर लाज़िम भी यही किया है।
1 comment:
यहाँ भी गुटबाजी और राजनीती.? इस्लाम को इस से बचाना होगा..
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