Friday, January 28, 2011

दारूल उलूम देवबंद में चल रहे संघर्ष का विश्लेषण The fact

http://hamarianjuman.blogspot.com/2009/09/blog-post_3696.html
हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के संपादकीय में आज दारूल उलूम देवबंद में चल रहे संघर्ष का विश्लेषण किया गया है। संपादक महोदय की संवेदनाओं को मोहतमिम मौलाना गुलाम मुहम्मद वस्तानवी साहब के साथ देखकर अच्छा लगा। उन्होंने उनके व्यक्तित्व की भी तारीफ़ की और उनकी उन घोषणाओं की भी जिनमें उन्होंने कहा है कि वे मदरसे के पाठ्यक्रम में विज्ञान, इंजीनियरी और चिकित्सा आदि भी शामिल करेंगे। इन घोषणाओं को संपादक महोदय ने उदारवादी और सुधारवादी क़रार दिया जो कि वास्तव में हैं भी और मौलाना वस्तानवी का विरोध करने वालों को उन्होंने पुरातनपंथी और कट्टरवादी क़रार दे दिया और निष्कर्ष यह निकाला कि दारूल उलूम देवबंद में जो संघर्ष फ़िलहाल चल रहा है वह वास्तव में पुरातनपंथियों और सुधारवादियों के बीच चल रहा है।
यह निष्कर्ष सरासर ग़लत है। जो लोग मौलाना वस्तानवी का विरोध कर रहे हैं वे पुरातनपंथी और कट्टर (बुरे अर्थों में) हरगिज़ नहीं हैं। उन्होंने भी दारूल उलूम देवबंद के पाठ्यक्रम में कम्प्यूटर और हिंदी व गणित आदि विषय शामिल किए हैं और हिंदी की भी वही किताब वहां पढ़ाई जाती है जो कि बाज़ार में सामान्य रूप से उपलब्ध है, जिसमें कि राम, सीता और हनुमान की कहानियां लिखी हुई हैं। अगर वे सामान्य अर्थों में कट्टर और पुरातनपंथी होते तो वे ऐसा हरगिज़ न करते या कम से कम वे हिंदी की ऐसी किताब तो चुन ही सकते थे जिसमें कि रामायण की कहानी के बजाय मुसलमान बुजुर्गों के क़िस्से होते। किसी चीज़ को देखे बिना महज़ लिखित सूचनाओं के आधार पर जब निष्कर्ष निकाला जाता है तो वे निष्कर्ष इसी तरह ग़लत होते हैं जैसे कि आज के संपादकीय में निकाला गया है।
जो लोग देवबंद में रहते हैं वे जानते हैं कि देवबंद का एक आलिम घराना संघर्ष का इतिहास रखता है। वह दूसरों से भी लड़ता है और खुद अपनों से भी। उसकी लड़ाई का मक़सद कभी मुसलमानों का व्यापक हित नहीं होता बल्कि यह होता है कि ताक़त की इस कुर्सी पर वह नहीं बल्कि मैं बैठूंगा। वर्तमान संघर्ष के पीछे भी असली वजह कट्टरता और पुरानी सोच नहीं है बल्कि अपनी ताक़त और अपने रूतबे को बनाए रखने की चाहत है। यह संघर्ष पुरातनपंथी सोच और उदारवादी सोच के बीच नहीं है बल्कि दरअस्ल यह संघर्ष दो ऐसे लोगों के दरम्यान है जिनमें से एक आदमी मौलाना वस्तानवी हैं जो मुसलमानों और देशवासियों के व्यापक हितों के लिए सोचते हैं और दूसरा आदमी महज़ अपने कुनबे के हितों के लिए। यह संघर्ष परोपकारी धार्मिक सोच और खुदग़र्ज़ परिवारवादी सोच के दरम्यान है। परिवारवादी खुदग़र्ज़ो के साथ भी वही लोग हैं जो कि उन्हीं जैसे हैं, जिनके लिए इस्लाम और इंसाफ़ के बजाय अपने निजी हित ज़्यादा अहम हैं। ये लोग अक्सर इस्लाम के नाम पर पहले अपने पीछे मुसलमानों की भीड़ इकठ्ठी करते हैं और फिर सियासत के धंधेबाज़ों से उन्हें दिखाकर क़ीमत वसूल करके अपने घर को महल में तब्दील करते रहते हैं और बेचारे मुसलमानों का कोई एक भी मसला ये कभी हल नहीं करते। मुसलमान सोचता है कि ये रहबरी कर रहे हैं जबकि ये रहज़नी कर रहे होते हैं। मुसलमानों की दशा में लगातार बिगाड़ आते चले जाने के असल ज़िम्मेदार यही ग़ैर-ज़िम्मेदार खुदग़र्ज़ हैं। धर्म की आड़ में ये लोग अर्से से जो धंधेबाज़ी करते आए हैं, मौलाना वस्तानवी के आने से उसे ज़बरदस्त ख़तरा पैदा हो गया है। उनका वजूद ही ख़तरे में पड़ गया है। यही वजह है कि वे मौलाना वस्तानवी का विरोध कर रहे हैं और इसके लिए छात्रों को अपना मोहरा बना रहे हैं। वे नहीं चाहते कि दारूल उलूम देवबंद में कोई ऐसा ढर्रा चल पड़े जिसकी वजह से मदरसे के छात्रों  और आम मुसलमानों में दोस्त-दुश्मन और रहबर और रहज़न की तमीज़ पैदा हो जाए और उनके लिए अपनी ग़र्ज़ के लिए उनका इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाए।
यही असल वजह है दारूल उलूम देवबंद में जारी मौजूदा संघर्ष की। इस संघर्ष को इसी नज़रिए से देखा जाना चाहिए और उम्मीद करनी चाहिए कि मौलाना वस्तानवी इसमें विजयी रहेंगे क्योंकि एक तो वजह यह है कि उम्मीद हमेशा अच्छी ही रखनी चाहिए और दूसरी बात यह है कि गुजरात के मुसलमान आर्थिक रूप से बहुत मज़बूत हैं और वे आर्थिक रूप से दारूल उलूम देवबंद की बहुत इमदाद करते हैं। उन्हें नज़रअंदाज़ करना या उनके साथ धौंसबाज़ी करना आसान नहीं है, ख़ासकर तब जबकि वे अपने विरोधी की नीयत को भी पहचान चुके हों कि उनके विरोधी की नीयत इस्लाम का हित नहीं है बल्कि खुद अपना निजी हित है। देवबंद की जनता और मीडिया के समर्थन ने भी मौलाना वस्तानवी के विरोधियों की हिम्मत को पस्त करना शुरू कर दिया है। दारूल उलूम देवबंद में बेहतर तब्दीली के लिए मीडिया एक बेहतर रोल अदा कर सकता है और उसे करना भी चाहिए क्योंकि मुसलमानों के साथ साथ अन्य देशवासियों के हित में भी यही है।

6 comments:

Unknown said...

Dear Anwar sir... Its really an immense pleasure to read this article. Since last so many days this issue has been continuously published in daily papers and e-sites with new modifications. People should understand the conspiracies plotted against a man, whose intention and statement was actually been "modi-fied" by media and some 'anti-camp' people in the name of Modi. Actually this issue should have not been popped up so much, as this has been no where concern with the profile of darul uloom deoband. Hope people will maintain dignity of his post and the dignity of most respected islamic seminary, rather than blindly stepping behind some roguish people...

DR. ANWER JAMAL said...

@ Brother Hamza ! Thanks for your precious comment .

Minakshi Pant said...

आपकी पोस्ट पढ़ी पढ़कर इतनी सारी जानकारी मिली क्युकी मुझे ये राजनीति खेल बिल्कुल पसंद नहीं न ही इससे कोई लगाव है हाँ इतना जरुर कहूँगी की राजनीति मै सिर्फ अपना फायदा देखा जाता है किस धर्म को क्या नुकसान हो रहा है इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता अरे इनके पास तो इतना ज्ञान भी नहीं की ये किसी धर्म को अच्छे से जानते होंगे जो इन्सान को नहीं समझता वो धर्म को केसे जानेगा क्युकी शुरुवात तो इंसानी ज़स्बे से ही होगा न !

जानकारी के लिए शुक्रिया दोस्त और आपको बहुत बहुत बधाई !

हरीश सिंह said...

poore dil ke sath aapke aapke dil roopi ghar me ghus chuka hai aapka chhota bhai, himmat hai to nikal kar dikhiye, kyon kaisa laga mera chalange. aadab arz hai janab.

Sharif Khan said...

मौलाना वस्तानवी को दारुल उलूम का मोहतमिम बनाया एक बहतरीन क़दम साबित होता अगर मौकापरस्त और मुस्लिम समाज के सौदागर इस हद तक मुखालिफत पर आमादा न होते. हम तो तसव्वुर करने लगे थे की अब नई हवा चलेगी और दारुल उलूम से इस्लामी बुनियाद वाले आई ए एस और आई पी एस अफसर निकल कर एक ऐसा नमूना पेश करेंगे जिसकी अब तक मिसाल नहीं मिलती. अब तक तो पुलिस चौकियों, थानों और कोतवालियों से होने वाली उगाही आई पी एस अफसर और तहसीलों, ब्लॉकों और दूसरे विभागों से होने वाली उगाही आई ए एस अफसर डकार कर कर्तव्यपालन का जो नमूना पेश कर रहे हैं कम से कम इस गिलाज़त से परहेज़ करने वाले अफसरों को भी लोग देख कर भारत के उज्जवल भविष्य की आशा कर सकते थे.

DR. ANWER JAMAL said...

@ भाई हरीश जी !
आपकी आमद का मैं बेहद ममनून हूँ .
धन्यवाद