Thursday, January 27, 2011

आप मुझे सवाल दीजिए मैं आपको जवाब दूंगा The purification of human heart

मेरे अज़ीज़ भाई हरीश जी ! आज हरेक आदमी एक नक़ाब लगाकर समाज में घूम रहा है। उसके अवचेतन में बहुत कुछ दबा हुआ रहता है और उसका चेतन मन उसके मन की भीतरी पर्त से बहुत सी ऐसी चीज़ों को प्रकट होने से रोकता रहता है जिन्हें ज़ाहिर करने से उसे नुक्सान पहुंचने का डर होता है। समाज में दूसरे समुदायों के साथ मुसलमान भी रहते हैं। आप उनसे मिलते हैं, यह आपकी मजबूरी है। इसके बावजूद सच यह है कि आपके अवचेतन मन की गहराईयों में यह बैठा हुआ है कि अधिकतर मुसलमान बुरे हैं। आपने यह बात ‘डंके की चोट पर‘ कही है। यह बात इतनी ज़्यादा ग़लत और असामाजिक है कि आपके ऐसा कहते ही ‘हमारी वाणी‘ ने क़ानूनी डर से तुरंत अपने बोर्ड से आपकी पोस्ट को ही नहीं हटाया बल्कि आपके ब्लाग का पंजीकरण भी रद्द कर दिया। आप कहने को तो कह गए लेकिन जैसे ही आपका क्रोध शांत हुआ और आपका चेतन मन पुनः सक्रिय हुआ तो उसने आपको बताया कि आप ग़लती कर गए हैं। ग़लती का अहसास होते ही आपने तुरंत माफ़ी भी मांग ली, यह आपकी अच्छाई है, इसीलिए मैं आपको एक अच्छा आदमी कहता हूं। आपके मनोविश्लेषण में मैंने पाया है कि आपके अंदर बेसिकली अंध सांप्रदायिकता नहीं है बल्कि बचपन से आप जिस माहौल में पले हैं, उसमें आपने मुसलमानों के बारे में बहुत सी नेगेटिव बातें सुनी हैं, वे आपके अवचेतन मन में बैठी हुई हैं। आपका मिलना-जुलना मुसलमानों से हुआ तो आपकी कुछ धारणाएं तो भ्रांत साबित हो गई हैं लेकिन तमाम भ्रांतियां आपकी अभी दूर नहीं हुई हैं क्योंकि अभी तक आपको या तो कोई एक भी मुसलमान ऐसा नहीं मिला जो कि आपकी सारी ग़लफ़हमियां दूर कर देता या फिर आपने ही उनमें से किसी के सामने अपने मन के सवाल इस डर से नहीं रखे कि ये लोग ख़ामख्वाह बुरा मान जाएंगे।

कुरआन पढने का सही तरीक़ा
आप कहते हैं कि आपने हिंदी का कुरआन भी पढ़ा है।
अब मैं आपको बताता हूं कि आपने कुरआन कैसे पढ़ा है ?
आप एक मीडियाकर्मी हैं। आए दिन आपके सामने कुरआन की आलोचना से संबंधित बातें गुज़रती रहती हैं। ख़ास तौर से आपके हाथ वह पर्चा लगा जिसमें इंसानियत के दुश्मनों ने कुरआन के बारे में यह अफ़वाह फैला रखी है कि कुरआन हिंदुओं को काफ़िर घोषित करता है, मुसलमानों को हिंदुओं से दोस्ती से रोकता है और कहता है उन्हें जहां पाओ वहीं क़त्ल कर डालो।
आपको यक़ीन नहीं आया कि कोई भी धर्मग्रंथ ऐसी घिनौनी तालीम कैसे दे सकता है ?
आपने कुरआन हासिल किया।
यह तो आपने अच्छा किया लेकिन आपने उसके साथ सबसे ग़लत यह किया कि आपको उसे सिलसिलेवार पूरी तरह पढ़ना चाहिए था और उसके साथ आपको पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब की जीवनी भी पढ़नी चाहिए थी कि उन्होंने कुरआन के हुक्म का पालन खुद कैसे किया और अपने अनुयायियों से अपने जीवन में कैसे कराया ?
आपने ऐसा नहीं किया बल्कि आपने केवल उन पर्चों में छपे हुए आधे-अधूरे उद्धरणों को कुरआन से मिलाया और कुरआन को उठाकर अलमारी में रख दिया। आपने उसमें जगह-जगह निशान भी लगा दिये। आप समझते हैं कि आपने कुरआन पढ़ लिया लेकिन आप खुद बताईये कि क्या वाक़ई इसे कुरआन पढ़ना कहा जा सकता है ?
यही बेढंगापन आदमी को कुरआन के बारे में बदगुमान करता है।
जो सवाल आज आपके मन की गहराईयों में दफ़्न हैं, उनमें से शायद ही कोई बाक़ी बचेगा अगर आप कुरआन को क्रमबद्ध रूप से थोड़ा-थोड़ा शुरू से आखि़र तक पढ़ें और उसे पैग़म्बर साहब के जीवन की घटनाओं से जोड़कर समझने की कोशिश करें। कुरआन का मात्र अनुवाद ही काफ़ी नहीं है बल्कि आपको कुरआन की आयतों का संदर्भ भी जानना होगा कि कौन सी आयतें किन हालात में अवतरित हुईं और उनका पालन कब और कैसे किया गया ?
मैं अपने साथ भेदभाव की शिकायत करता हूं कि मेरे साथ भेदभाव किया जाता है। आप बताईये कि मेरी पोस्ट एलबीए के अध्यक्ष ने डिलीट कर दी, उन्होंने ऐसा क्यों किया ?
उन्होंने मेरी पोस्ट डिलीट कर दी तो क्या आपने उनकी इस ग़लत हरकत पर कोई ऐतराज़ जताया ?
अध्यक्ष जी ने मेरी ऐसी पोस्ट क्यों डिलीट कर दी जिसमें मैंने किसी भी हिंदू भाई को या उनके किसी महापुरूष को या उनकी किसी भी परंपरा को बुरा नहीं कहा, उनके किसी धर्मग्रंथ को बुरा नहीं कहा ?
जबकि आपकी पोस्ट को उन्होंने डिलीट नहीं किया जिसमें आपने अधिकतर मुसलमानों को बुरा बताया, जिसमें आपने कुरआन पर ऐतराज़ जताया और उसकी भाषा इतनी उत्तेजक है कि उसे हमारी वाणी के मार्गदर्शक मंडल ने अपने बोर्ड के डिस्पले से हटा दिया।
आपकी जिस पोस्ट को हमारी वाणी के मार्गदर्शक मंडल ने भी आपत्तिजनक पाया जिसमें कि पांच में से चार भाई हिंदू हैं, उसे आपके अध्यक्ष जी ने क्यों नहीं हटाया ?
और
मेरी अनापत्तिजनक पोस्ट को क्यों हटा दिया ?
मैंने उसे दोबारा फिर एलबीए पर डाला, अगर वह आपत्तिजनक थी तो उसे दोबारा क्यों नहीं हटाया गया ?
मेरे साथ भेदभाव होता रहा और आपने एक बार भी अपनी आपत्ति ज़ाहिर नहीं की। यह है आपका भेदभाव। आपने ही नहीं बल्कि कार्यकारिणी के किसी भी हिंदू भाई ने इस जुल्म के खिलाफ़ आवाज़ नहीं उठाई, क्यों ?
जबकि श्री पवन कुमार मिश्रा जी ने इस डिक्टेटरशिप के प्रति अपना रोष प्रकट किया। क्योंकि उन्होंने इस मामले को न्याय की दृष्टि से देखा। उनका नाम आज तक मेरे कट्टर विरोधियों में ही लिया जाता है। इसके बावजूद उन्होंने वह बात कही जो आप नहीं कह पाए, क्यों ?
जो अनवर जमाल के साथ किया जा रहा है वह हरीश सिंह के साथ नहीं किया जाता , दोनों में ऐसा क्या फ़र्क़ है ?
सिवाय इसके कि अनवर जमाल एक मुसलमान है और हरीश सिंह एक हिन्दू.
और अगर मैं इस बात को बार बार आपके सामने लाता हूँ तो आप कहते हैं कि मेरे ऐसा करने से  आपका दिल दुखी होता है .
सच सुनने से आपका दिल दुखी क्यों होता है?
आप अपने भेदभाव को त्याग दीजिये फिर मैं आपसे आपकी शिकायत नहीं करूँगा और तब आपका दिल भी दुखी नहीं होगा .
अपने दिल को दुःख से बचाना खुद आपके हाथ में है क्योंकि हमारे ऋषियों ने बताया है कि अपने दुखों के पीछे कारण है खुद उसी मनुष्य के पाप जो कि दुखी है .
आप कहते हैं कि आप दुखी हैं तो आप अपने कर्मों का विश्लेषण कीजिये और पापमार्ग छोड़कर प्रायश्चित कीजिये.
आपका दुःख निर्मूल हो जायेगा , मेरी गारंटी है .
आप व्यस्त थे, मैं मान लेता हूं लेकिन हमारे अध्यक्ष जी तो यहां एलबीए की कई पोस्ट्स पर गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं देते घूमते रहे लेकिन मुझे शुभकामनाएं देने नहीं आए, क्यों ?
उनके इस रवैये को दुराग्रहपूर्ण और पक्षपात वाला क्यों न माना जाए ?
जो आदमी सबको समान नज़र से न देख सके वह अध्यक्ष बनने के लायक़ कैसे हो सकता है ?
दूसरों से अपील कर रहे हैं कि कोई काम ऐसा न किया जाए कि दूसरों की भावनाएं आहत हों और खुद हमारी भावनाएं वे आहत कर रहे हैं, क्यों ?
अध्यक्ष वह होता है जिसके पास न्यायदृष्टि हो, सबके लिए प्रेम हो और जो बात वह दूसरों से कहे उसे खुद करके भी दिखाए। ये तीनों ही बातें मुझे तो श्री रवीन्द्र प्रभात जी में नज़र आई नहीं।
ब्लागिंग एक ऐसा मंच है कि यहां आपको हरेक सवाल का सामना करना होगा। या तो सवालों का संतोषजनक उत्तर देना होगा।
जो सवालों से बचना चाहे, वह ब्लागिंग में न आए।
मैं सवालों से बचना नहीं चाहता बल्कि मैं चाहता हूं कि जो सवाल आज तक आप लोगों के मन में दबे पड़े हैं, उन्हें आप मेरे सामने लाईये। इंशा अल्लाह मैं उनका जवाब दूंगा।
आपके हरेक सवाल को मैं अकेला फ़ेस करूंगा और आप सबको जवाब भी दूंगा लेकिन आप सब मिलकर भी मेरे सवालों को न तो फ़ेस कर सकते हैं और न ही उनके जवाब आप दे पाएंगे।
या तो आप एलबीए पर सवाल जवाब चलने दीजिए या फिर उन्हें बंद करना चाहें तो जो भी नियम बनाएं उसे सब पर लागू कीजिए।
मेरे ब्लाग चर्चाशाली मंच पर आईये, यहां आप पर कोई पाबंदी नहीं है। आईये आपके अवचेतन में दबी पड़ी हरेक ग्रंथी से मैं आपको मुक्ति दूंगा।
आप मुझे सवाल दीजिए मैं आपको जवाब दूंगा।

1 comment:

किलर झपाटा said...

वाह वाह डॉ. साहब,
आपके सवाल का कोई जवाब नहीं। यार आपसे दिली मोहब्बत टाइप की होने लग गई है। आपका जस्टीफ़िकेशन पॉवर गजब का है। एक बात कहूँ ? आप बहुत पढ़ते हो इसीलिए इतना अच्छा लिख पाते हो। ब्लॉगरों को आपसे सीखना चाहिए। आय एम विथ यू ऑन दिस मैटर। कुर‍आन जिंदाबाद।